पृष्ठ:बीजक.djvu/६३६

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(५९८) बीजक कबीरदास । पथिक जो विचारिकै न चलै तौ राह बिचारी कहाकरै वेद पुराण शास्त्र येई सइ रहे हैं तिनको तात्पर्य यही है यहनीव साहब के अंशहै उनहाके जाने संसार छूटै हैं सो रामनाम को जपिकै साहबके हैरहै यह जो है आपने मग तौलको छोड़कै उनार उजारि कहे कोई ब्रह्ममें कोई ईश्वर में कोई नाना। देवतन की उपासनामें फिरै हैं सोउनके जननमरण रूप कष्टक लागिबोई चाहैं। नरकरूप खोह गिरैचाहै औ जीवसाहबके अंशहै तामें प्रमाण ।। ‘‘ममैवांशजैवलोके जीवभूतः सनातनः ।। ॐ ब्रह्ममाया ईश्वर् जगद् इन्क विचार तौ भ्रममा झडू इनके जीइ उद्धारनहीं होयदै जाने । ब्रह्माजी ईश्वरजगत ईसब अनमिलसैन । निरबारे ठहर नहीं भाखत झाई बैन’’ ! १८८॥ भूहैि । जाहुरे, बिनु र थोथे मुल ६३ । पूरे छु , अजु अझै की काल॥ १८९ ।। अजीब ? तुस् नौ बार भरतार्थ हैं। औ मरिजाउगे बिना शरकहेते ३ तुम्हारे में थेथे लिखे हैं बिना फलके बाणस तुम यहि संसार वृत्त । बोलते बताते है सो परे कल्हारते हौ अनु जरैजाउ किं करिहर दुइ कछू नहीं है है १८९ । । बोली हार टू , हमें हवा हि इ ६ हक्क हुई है, ३ धू वा होइ १९ हुई। हमार जो पूर्बकहे पहिलेकी दो ज साहबकारू उपशु करिअरे जीदक स्वरूप बतायआये से कोई नहीं देखे है न हम को है है से हम बाणको तो साई लखै है जो कोई पूरुबके कहे शुद्ध वैजय ल दूही रह्यो है ! १९०६३ जेहि चलते रवड़े पर, धरती होइ विहार ।। सोइ सावज वामें जरै, पृण्डत करो बिचार' हैं३६९३॥ जेहि जीवके चलतकहे निकसतमें यहशरीर बदे कहे धूरिमें मिलिजाय है। पुनि वैजीव जो कहूं अवतरै है तब यहै शरीर को पाइकै धरती में विहा