पृष्ठ:बीजक.djvu/६४१

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साखौ । नाम न जाने ग्रामको, भूला मारग जाय ।। काल गड़ेगा कांटवा, अगमन कस ल खोराय ॥२०२॥ अरे साहबकै तो नगरको नामही नहीं जानै है औरे मतन मारगमें काहे भूला जाय है यह काल रूप कांटा तेरे गड़ेगा काल तोको मार डारेगा तेहिते अगमन कहे आगे वह खोरिकहे राहमें आवै जेहिते कालते बचिजाय ॥ ३०२ ।। संगति की जै साधुङ्गी, हरे और की व्याधि ।।। ओछी संगति क्रूरकी, आउँ पर उपाधि ।। ३०३ || जो साधुकी संगति करिये जे साहबको जनाय देनवारे हैं तो साहबको जानिकै औरकी व्याधि हरे औजो क्रूर जे असाधु तिन की संगति करै । आउँ पहर उपाधिहीं लग रहे हैं । २०३३ । जैसी लई गैस, द निहै थरि है। कौड़ी कौड़ी जारिकै, धूज्य लक्ष करि ३०४ ।। और ते जो थोरहूथोर साहबमें लगै भक्ति कैरै तैले छोरलों निबहिनी यहै तो जो थोरऊ थोर साहबमें लगे औ साहबकी भक्तिकर है। जैसे कौड़ी कौड़ी जारे के करोरि है यहै ऐसे बाकी भक्त हू वैनायौ अनेक जन्मकै संसिद्धिते मुक्तद्वै जायहै ।। २०४ । । आजु काहि दिन-एक, अस्थिर नहीं शरीर ।।। के दिनलों परिवहौ, चे बालवा ली है। २०६। अनु काल्हि यहि कलिकालने एकै दिनों शरीर स्थिर नहीं है केददीबेरधौं शरीर छुटिजाय आगे तो श्रम रह्यो है कि ये आयुर्दा गनुध्यकी है। अबतो कटू प्रमाणै नहीं है केती बेर शरीर छुटिजाय तेहिते साहब को भजन को कच्चे बासन शरीर में केते दिन नीर राखौगे । २०५ ।। करु बहियां बल आपनी, छाड्डुबिरानी आस ।। जाके आंगननदीव है, सो कसमरै पिआस ॥२०६॥