पृष्ठ:बीजक.djvu/६४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

साखी । | (६०९) तीरथ गये सो तीन जन, चितचंचल मन चौर ॥ एकौ पाप न काटिया, लादे दशमन और ॥२१० ॥ इनके अर्थ स्पष्टई हैं ॥ २०८ । २०९ । २१० ॥ तीरथ गये ते वहि मुये, जूड़े पानी न्हाय ॥ कह कबीर संतो सुनौ, राक्षस वै पछिताय ॥ २११॥ तीर्थ में ले जाय हैं ते तीर्थके जूड़े पानी में नहायकै बहि मुये कहे खराबढे मुये काहे ते कि नौन तीर्थजाबे नहालेकी विधि है सो एकौ न किये काहूको धक्का मारचे काहूपै कोप कियो सो कबीरजी कहै हैं कि हे सन्तै सुनौ ते नर राक्षक होइकै पछिताय हैं कि हम सों न बनी ॥ २११ ॥ तीरथ भै बिष बेलरी, रही युगन युग छाय ॥ कबिर न मूल निकन्दिया,कौन हलाहल खाय॥२१२॥ तीरथ कहे तीन हैं रथ जाके सतरजतम ऐसी जो त्रिगुणात्मिका माया सों विष बेलरीभै चारिउयुगमें छाय रही है कबिरन मूलनिकन्दिया कहे मूल जो रामनाम है ताको कबिरा जे जीव हैं ते निकन्दिया कहे न ग्रहण करते भये जो कोई कहबौकियो ताहूको खण्डि डारत भये सो या नाना कुमति रूप हलाहल खाय जीव क्यों न नरकै जाय जाबही चाँहै ॥ २१२ ॥ • हे गुणवन्ती बेलरी, तव गुण वणि न जाय । जर काटेते हरि अरी, सींचते कुंभिलाय ॥२१३॥ हे गुणवंती बेलरी माया बाणी तेरो गुण बरणि नहीं जाय है कहांढौं वर्णन करें जब तेरी जर काटन चलें हैं तीर्थं करिकै अहंब्रह्मास्मि कैकै तौ अधिक हारअरी होय है महीं ब्रह्महैं। या अभिमान बढ्यो अधिक हार अरी भई तामें प्रमाण ॥ * कुशलाब्रह्मवार्तायां वृत्तिहीनाः सुरागिणः ॥ तेपि यान्तित मौनूनं पुनरायान्तियान्ति च ?? ॥ २१३ ॥