पृष्ठ:बीजक.djvu/६५२

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बीजक कबीरदास । यामें या हेतुहै कि ने नीकी तरह साहबको जानै हैं ते यही दे है जाय सो गोपी याही देहै गई हैं सो ब्रह्मवैवर्तक में प्रसिद्ध है सो गोपिका नीकी प्रकार जान्यो है ॥ २३० ॥ पूरवङगै पश्चिम अथवे, भखै पवनको फूल ॥ ताहूको तो राहुगरासै, मानुषकाहेकभूल ॥ २३१॥ पूरबते सूर्य उगै हैं औ पश्चिम अथवै हैं पवनको फूलभखै हैं अर्थात् प्रबल पवन चलै है वाही भ्रमतरहै हैं ऐसे सूर्य हैं तिनहूँ सूर्य को राहुगरासै है अरे मनुष्य जी तें भूलें है कि पवनतेमैं आत्माको चढ़ाय लेउँगो हजारन वर्षपवनै खाय जिवोंगो मुक्त है जायगो सो हैं केतदिन पवनखायगो ने सूर्य केतदिन पवनखायो ताहूको कालराहु गरासै हैं हैं कैसे कालते बचौगे ॥ २३१ ।। नैनके आगे मन बसै, पलपलकरै जो दौर ॥ तीनि लोक मन भूपहै, मन पूजा सब ठौर ॥२३२॥ ज्ञाननयनके आगे मनहीं बसै है वह धोखाब्रह्म मनहीं को अनुभव है। पलपलमें दौरै है नयन बिषयनमें लगे है नाना मतनमें लगे हैं नानाज्ञान बिचारकरै हैं तीनि लोकमें या नहीं भूपैहै मनहीं की पूजा सब ठौर होइहै अर्थात् मनहीं ब्रह्म है पुजवै है मनहीं जीवात्माको ज्ञान करै है कि मैहीं मालिकहौं जो मनके परे साहब हैं ताको कोई नहीं जानै हैं ॥ २३२ ॥ । मन स्वारथ आपहि रसिक, विषय लहार फहराय ॥ मनके चलते तन चलत, ताते सरवसुजाय ॥ २३३॥ या आपनो स्वारथ मनहाको मानिलियो मनको रसिक आपही भयो अर्थात् मनको रस आपही लेइ है मनके किये जे पाप पुण्य तिनको भौगैया आपही बन्यो है याही हेतुते याके बिषय लहरि फहरायरही है सोई विषयनको जब मनचल्यों तब जीवहु चल्यो भनके चलते तनहूँ चल्यो जाय है बिषय करनको ताते सरबसुहानि या जीवकी होती है अर्थात् बिषय लिये पापादिक कर्मकियों नरकको गयो औ येई बिषयन लिये अप्सरनको भोगकरै है नानायज्ञादिक कियों