पृष्ठ:बीजक.djvu/६६७

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साखी । ( ६२९) जहँ गाहक तहँहौं नाहि, हौं जहँ गाहक नाहिं ॥ बिनविवेकभटकताफरै,पकारशब्दकीछाहि ॥ २८१॥ गुरुमुख । जहां नाना ईश्वर नाना उपासना नाना ज्ञान इन एकहूको जहां गाहकहै तहां मैं नहीं है अथवा जहां कौनिहूँ बस्तुकी चाहहै तहां मैं नहीं हौं जहां कौनिहूँ बस्तुकी चाह नहीं है तहमैं हैं सो बिना बिबेक कहे बिना सांच असांचके जाने अर्थात् सांच जो रामनाम ताके बिना जाने गुरुवालगनके शब्दकी छांह पकरिकै संसार भटकत फिरै है जनन मरण नहीं छूटै है जब रामनाम जानै तब संसारते छूटै तामें प्रमाण “सप्तकोटि महामन्त्राश्चित्तवि भ्रम कारकाः ॥ एक एव परो मन्त्री राम इत्यक्षरद्वयम् ॥ २८१ ॥ शब्दुहमाराआदिका, इनते वली न कोई ॥ आगे पाछे जाकरै, सो बलहीना होइ ॥२८२॥ | गुरुमुख । साहब कहै हैं कि शब्द जो है हमारो रामनाम सो आदिकाहै अर्थात् राम नामही ते सबकी उत्पत्ति भई है सो या रामनामते बली कोई नहीं है यह आदि शब्द जो रामनामे ताके जपिबेमें जे आगे पीछे करै है अर्थात् याको बल छोड़ि और देवतनको बल मान है सो बलहीन होइहै अर्थात् मुक्ति होनेकों बल नहीं रह जायं ॥ २८२ ॥ नगपषाणजगसकलहैं, लखिआवै सब कोइ ॥ नगते उत्तमपारखी; जगमें बिरला कोइ ॥ २८३॥ या जगमें नग जो है तिहारों मन से पाषाण है रह्यों है त्यहिते तुमहूं जाषाण मैगयों मनमें मिलिकै जग द्वैगये सो वहीमें आवै है वहीमें जाइहै सो नग जो हे मन त्यहिते उत्तम जे पारखी जीव हैं अर्थात् मनते न्यारे जे जीव हैं तौन जक्तमें कोई बिरलौह औ मनको माणिक पीछ बेलिमें कहि आयेहैं॥२८३॥