पृष्ठ:बीजक.djvu/६७

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(१६)                     बीजक कबीरदास ।

रामनाममें छामात्राहै तामें प्रमाण ॥ रामनाममहाविन्धे षङ्कभिर्वस्तुभिरावृतम् ॥ जीवब्रह्ममहानादेखिभिरन्यंवदामिते ॥ स्वरेणअर्धमात्रेणदिव्ययामाययापिच । इतिमहारामायणे ।। और रामनामको जो. अर्थ भूलिगये हैं तामें प्रमाण सब मुनिन को भ्रमभयो श्रुतिनको प्रमाणदै कोई कहै हमारामत ठीक है। कोई कहै हमारो मत ठीक है । तब सब मुनि वेदन ते पूछयो जाई । वेदहू विचारेउ कि सबमें तौ हमारही प्रमाण मिलँदै सोबेदहूको भ्रमभयो । तब सबमुनि औं वेद ब्रह्माके पासगये । तबब्रह्मा ते पूंछयो तब ब्रह्मौके भ्रमभयो कि, साँच मत साँच साहब कौन है । सो महादेवजी पार्वती जीते है हैं कि, तब सबकोई साहब श्रीरामचन्द्रको ध्यान कियो तब साहब कह्यो कि यह बात सबके आचार्य जे संकर्षण है ते जानैहैं तिनके पास सबको पैटै देहु वे समझाय देयँगे । तब ब्रह्मा की अज्ञात सब संकर्षण रूप शेषके इहांगये सो वेदं उहां पूंछयो, संकर्षण ते, तब संकर्षण जी एक सिद्धांत जे परमपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं तिनको बतायो है राम नाम को यथार्थ अर्थ तौन सदाशिवसंहिता के ये श्लोक हैं ॥ *

"रामनाम्नोऽथमुख्याथभगवत्स्वेतप्रतिष्ठितम् । विस्मृतंकंठमणिवद्वेदाशृणुततत्त्व तः १ तात्पर्य्यवृत्त्याविज्ञेय बोधयामिविभागतः ॥ रामनाम्नशुचिनँयाः षण्मात्रांत त्वबोधकाः २ रामनाम्निस्थितोरेफोजानकीतेनकथ्यते ॥ रकारेणतुविज्ञेयःश्रीरामः पुरुषोत्तमः ३ आकारेणतथाज्ञेयभरतोवश्वपालकः ॥ व्यंजनेनमकारेण लक्ष्मणों ऽत्रनिगद्यते ४ ह्रस्वकारेणनिगमाःशत्रुघ्ःसमुदाहृतः ॥ मकारादिधाज्ञेयःसानुनासिकभेदतः ५ प्रोच्यतेतेनहंसावैजीवाश्चैतन्यावग्रहाः॥ संसारसागरोत्तीर्णापुनरावृ त्तिवर्जिताः ६ दास्याधिकारिणःसर्वेश्रीरामस्यमहात्मनः ॥ एतत्तात्पर्यमुख्यार्थादन्यायोनभूपते ७ सोऽनर्थइतिविज्ञयेःसंसारमाप्तिहेतुकः ॥ इतिसदाशिवसंहितायांविंशाध्यायेवेदान्प्रतिशेषवचनम् ॥ सो जौननाम साहब बतायो ताके औरई औ अर्थकरिकै जीव संसारीद्वैगयेसाहबकोनजान्यो ॥ १९।।

 दोहा-तेहि पाछे हम आइया, सत्य शब्द के हेत ॥
  आदिअन्तकीउतपति, सोतुमसोंकहिदेत ॥ २० ॥