पृष्ठ:बीजक.djvu/६७३

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साखी । { ६३७) तकत तकावत तकिरहे, सके न वेझामारि ॥ सबै तीर खालीपरे, चले कमानी डारि ॥ ३०९॥ साहब कहै हैं कि जेजीव!मोको तकै हैं अर्थात् मेरे सन्मुख भये हैं तिनको माया कालादिक ने हैं ते काम क्रोधादिकनते तकावै हैं कि जबहीं संधिपावें तबहीं मारिलेईं औ आपहू ताके रहै हैं परन्तु जे जे मोको तक रहे चारयो युग तिनको ये कबहूँ न बेझा मारिसकै हैं सो जबसबैतीर खाली परे माया कालादिकनते तब कमानी डारिकै चलेगये अर्थाद मोको जे हंसजीव जानै हैं तिन में माया कालादिकनको जोर नहीं चलै है ॥ ३०९ ॥ जस कथनी तस करनियो, जस चुम्बक तस नाम । कह कबीर चुम्वक विना, क्यों छूटै संग्राम ॥ ३१० ॥ जस साधुनकी कथनी कहे कहै हैं तस करनिउँहै कैसे जैसे चुम्बक श्रीरामचन्द्रहैं तैसे उनको नामहूं है सो कबीरजी कहे हैं कि रामनाम चुंबकबिना कामादिकनको संग्राम याको कैसे छुटै जैसे लोहेकोकना धूरिमें मिलोरहै है जब चुम्बक देखावा तौ वाही में लपटि अवै है धूरिमें नहीं है ऐसे या जीव साहबको है साहबको नाम लेइहै तबहीं संसारते छूटै है नहीं भटकते रहै है॥३१०॥ अपनी कहै मेरी सुनै, सुनि मिलि एकै होइ ॥ मेरे देखत जगगया, ऐसा मिला न कोई ॥३११॥ | गुरुमुख । साहब कहै हैं कि आपनी शंका मोसों कहै पुनि जौन मैं वेदशास्त्रादिकनमें कह्या है ताको सुने औ वह मेरे वाक्यमें मिलावै देखैतो कोई शंका रहिजात है अर्थात् न रहिनायगी तब एकै मत द्वैजाय एकैने। मैं हैं ताहीको जानिलेइ और सब छोड़ देइ सो ऐसा मोको कोई न मिला जो मेरे देखत जगगया होइ कहे जगवते दूर भया होइ ॥ ३११ ॥