पृष्ठ:बीजक.djvu/६७४

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(६३८) बीजक कबीरदास । देशदेशहमवागिया, ग्रामग्रामकी खोरि ॥ ऐसाजियराना मिला, जोलेइफटकिपछोर ॥ ३१२ ॥ कबीरजी कहै हैं कि मैं देशदेश गाउँ गाउँ खोरि खेरि बाग्यो परन्तु ऐसा जियरा मोको कोई न मिला कि जो मैं कहौ हैं ताको फटकि पछोरि लेइ॥३१२॥ लोहे चुम्बक प्रीति जस, लोहा लेत उठाय ॥ ऐसा शब्द कबीरको, कालते लेइ छुड़ाय ॥ ३१३ ॥ | लोहेकी औ चुम्बककी प्रीति है जो लोहको चुम्बक देखै है सो उठाय लेइहै ऐसे कबीर जो है कायाको बीर जीव ताको या शब्द रामनामहै जौन जीवनको कालते छुड़ाय लेय है जैसे चुम्बक लोहे के किणकाको आपने में लगाये लेइहै। ऐसे रामनाम जीवको में लगाय लेइहै ॥ ३१३ ॥ गुरू विचारा क्या करे, शिष्यहिमेचूक ॥ शब्द बाण बेधे नहीं, बॉसवजावें फूक ॥३१४॥ | कबीरजी है हैं कि गुरू जो है साहव सो बिचारा कहा करै शिष्य जो है। जीव ताहीमें चूकैहै कौन चूकेहै या कि रामनामरूपा जो शब्दबाण ताके साथ छइउजेचक्र तिनको बेधिकै सातों चक्र जे हैं सुरतिचक्र ताको बेधिकै उहां जो गुरूबता हैं मकरतारडोरि ताही चढ़िकै रामनाम रूपीबाणके साथ साहबके पास जायबो न जान्यो वहै निर्गुण ब्रह्म जो है झूरबाँस ताहीमें लगिकै फूकि- हूंकि बजावै हैं अर्थात् वोहीको ज्ञानकथै हैं ॥ ३१४ ।। दादावावाभाई कै लेखे,चरनहोइगे बंधा ॥ अबकी बेरिया जोना समुझयो,सोईसदाहै अंधा३१५॥ मानुष शरीर पायकै दादा बाबा भाई सब साहिबैको मनै है सोई साहबके चरणको बंधा होइहै कहे साहबके चरणमें सदा लगे रहै हैं सो अबकी बेरिया कहे या मानुष शरीर पायके साहबको न जान्यो सोई सदाको अंधाहै॥३१५॥