पृष्ठ:बीजक.djvu/६७६

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(६४०) बीजक कबीरदास। . मरतेमरते जगमुवा, बहुरि न किया बिचार ॥ एकसयानी आपनी, परबशमुवा संसार ॥ ३२० ॥ मरत मरत सबजग मरिगया औ मरत चलोजायहै पै बहुरि कै कहे उलटिकै कोई न बिचार किया कि काहेते मरे जाय हैं अपनी अपनी सयानी ते एकएक खाविंद खोनि लियो साहब को न जान्यो जे जीवके मालिक हैं तेहिते काल के बशकै सब मरे जायँ हैं ॥ ३२० ॥ पैठाहै घर भीतरै, बैठहै सचेत ॥ जब जैसी गति चाहता, तब तैसीमति देत ॥ ३२१ ॥ साहब जो है सो सब के घटमें पैठाहै औ सचेत बैठहै जब जैसी गति जीवचाहै है तबतैसीमति जीवको देइहै जीव अणुचैतन्य है साहब बिभुचैतन्य सो जीव जौनेकर्मको सम्मुख होइहै तब चैतन्यता बढाय देईहै तैसेमति बढ़ाय देइहै औ बिना साहब के समर्थं जीव कछनहीं करिसकै तामें प्रमाण ॥ “कर्तृत्वं करणत्वं च स्वभावश्चेतनाधृतिः ॥ यत्प्रसादादिमे संति न संति यदुपेक्षया॥ इतिश्रुतेः " ॥ ३२१ ॥ बोलतहीपहिचानिये, चोरशाहुके घाट ॥ अंतरकी करणी सबै, निकसै मुखकी बाट ॥ ३२२ ॥ जे साहब में लगे हैं ते औ ने धोखाब्रह्म में लगे हैं ते इनको कैसे पहिचानिये तो उनके बोलते अन्तरकी करणी मुखकी बाट निकसै है तबहीं चोर शाहु पहिचाने परै हैं इहां चोर जो कह्यो सो यह जीव साहबको है तिनको चोराइकै कहे छोड़िकै धोखामें लग्यो ताते चोरकह्यो है तामें प्रमाण ॥ * नारिकहावैपीउकी, रहै और सँग सोई॥ जारपुरुष हिरदे बसै,खसमखुशीक्योंहोइ॥३२२॥ दिलकामहरमकोइनमिलिया, जो मिलियासोगरजी ॥ कहकवीरअसमानैफाटा, क्योंकरिसीवै दुरजी॥३२३॥ | मन दिलका महरमी कहे निःकामदै साहब में लगैया कोई न मिल्यो जो मिल्यो सो गरजवाला मिल्यो ताको तेतनै मैंजूरी देकै साहब अनृण हैजाय हैं।