पृष्ठ:बीजक.djvu/६८५

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साखी । प्रतिबिंब बीजकमें दिखायो अर्थात् यह बतायदियो कि, रामनामहीते जगत मुख अर्थ में सबकी उत्पत्ति भई है । औ रामनामही साहबको बतावै है। साहब मुख अर्थमें । औ अनिर्बचनीय साहबको रामनामही देखाय देइहै यह भी कबीरजी अलखके देखिबेको उपाय बताय दियो यही अलखको लखावनो है से जब साहब को लैजाय तब या लखै तामें प्रमाण सुखसागरको ॥ * अलख अपार लखै केहि भांती । अलखलखै अलखैकी जाती ॥ ३४१ ॥ बूझौ करता आपना, मानौ वचन हमार ॥ पंचतत्त्वके भीतरै, जिसका यह विस्तार ॥ ३४२॥ तुम कहते आये औ तुमको को कियों से अपने कर्ताको तुम बुझौ वह साखी में तो बचन हम कहि आये ताको तुम मानौ तुम वह शब्द रामनामही ते भये हौ जिसका यह विस्तार सब देखतेहौः औ जौन जौन मानिदी तुम मानिराखेहौ सो सब पंचतत्त्वकेभीतरैहै एकवह रामनामही पंचतत्वके बाहिर है। है वही तुम्हारो आदि कर्ता है ॥ ३४२: ॥ हमकत्ती सकल सृष्टिके, हम पर दूसर नाहि ॥ कहै कबीर हमे नहिं चीन्है,सकल समानाताहि॥३४॥ हमहीं सम्पूर्ण सृष्टिके कर्ता हैं हम मालिक दूसर नहीं है हमहीं सबके मालिकहैं सबमेरेहीं में समानहै हमही ब्रह्महैं ऐसा कोई कोई कबीर कायाके बीरजीव है हैं ताको आपै खंडन करै हैं ॥ ३४३ ॥ सुतनहिं मानै वातपिताकी, सवै पुरुष बिदेह ॥ कहै कबीर अवहुँ किन चेतौ, छांड़ो झूठ सनेह॥३४४॥ तें सुतहै रामनाम प्रतिपाद्य जे साहबहैं ते तेरे पिताहैं तिन की बात हैं नहीं माँन है औ बिदेह पुरुष जो है ब्रह्म ताको सेवै है कहे आपही ब्रह्म हैं। बैठे है सो अबहू चेतकरु साहब कहि आये हैं कि॥“अजहूं लेहुँ छड़ाय कालस जो घट