पृष्ठ:बीजक.djvu/६८८

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(६५२ ) । बीजक कबीरदास । जिसका मंत्रजपें सत्र सिखिकै, तिसके हाथ न पाऊ॥ कलैकबीर मातुसुतकाही, दिया निरंजन नाऊ॥३५॥ जिसका मन्त्र सब सिखिकै जैप हैं प्रणव उसका अर्थ ब्रह्मही है जिसके हाथ पांउ नहीं हैं औ निरञ्जन जो है ब्रह्म ताको निरञ्जननाम मायैको धरायो। है भाया वा निरञ्जन ब्रह्मकी माता है काहेते कि या निरञ्जन नाम बचन में अवै है बिज्ञान कारकै अनुभव जो ब्रह्म होइहै सो मनको अनुभवहै मायैको पुत्रहै वह माया मनमें मिलि इच्छारूपहै सो जाको तुम ब्रह्म कहौहौ सोई माया ते रहित नहीं है तुम कैसे अहम्ब्रह्म मानि माया ते रहित होउगे तामें प्रमाण कबीरजीके शब्दको ॥ “मनपरपश्ची मनेनिरञ्जन मनही है ओङ्कारा । तानलेक मनफांसिलियाहै कोई नं मनते न्यारा ॥ ३५३ ॥ जनि भूलौरे ब्रह्मज्ञानी, लोकवेदके साथ ॥ कहकबीर यह बूझहमारी, सी दीपकलियेहाथ ३३४॥ कबीरजी कहै हैं कि रे ब्रह्मज्ञानी तुम जनि भूली लोक वेइके साथ लोकमें सरहना पायकै वेद में धोखाब्रह्ममें लगिकै अर्थात् तुम यामें न खराब होउ । सो कह कबीर यह बूझ हमारी कहे कायाके बार जीवौ परमपुरुष जे साहब श्रीरामचन्द्र तिनमें तन मन ते लागो जो हमारी बुझहै सोई साहबके अनुराग रूप दीपकहाथमें लेउ जाते संसाररूप अन्धकारते पारहोउ ॥ ३५४ ॥ | देव न देखा सेवकह, सेवक देवनदीख ॥ | कहकबीर इन मरते देखे, यह गुरु देई सीख॥३५९॥ देवता आपने सेवकको सेवक आपने इष्ट देवताको न दीख तिनको कबीरजी के हैं कि हम दूनों को मरते देखा है अर्थात् महाप्रलय में नहीं रहैं ताते हम गुरुकी सीख इनको देते हैं कि धोखा औ नाना मतको त्यागि साहब कों जानो जाते जनन मरण छूटै या सीख देते हैं ॥ ३५५ ॥ तेरीगति तें जानै देवा, हममें समरथ नाहीं ॥ कहकबीर यहभूल सबनकी,सबपरे संशय माहीं॥३५६॥