पृष्ठ:बीजक.djvu/६९२

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(६५८) बीजक कबीरदास । बहु परच परतीति दृढ़ावै साँचेको विसरावै । कळपत कोटि जन्म युग वगै दर्शन कतहुं न पावै ॥ परम दयालु परम पुरुषोत्तम ताहि चीन्ह नर कोई । तत्पर हाल निहाल करतहै रीझतहै निज सोई ॥ बधिक कर्म कार भक्ति दृढ़वै नाना मतको ज्ञानी । बीजक मत कोइ बिरला जानै भूलि फिरे अभिमानी ।। कहे कबीर कत्तीमें सब है कर्त्त सकल समाना । भेद बिना सब भरम परे कोउ बूझै संत सुजाना ॥ ३६१ ॥ इति श्रीकबीरजी विरचित बीजक तथा सिद्भश्रीमहाराजाधिराजश्रीमहाराजा श्रीराजबहादुर श्रे.सीतारामचन्द्रकृपापात्राधिकारविश्वनाथासंहजूदेवकृत पाखण्डखण्डनी टीकासमाप्त । शुभमस्तु । =-=--=- = -=-=-=-=-= = - -==