पृष्ठ:बीजक.djvu/६९४

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तेज तपै दिननायक अनूपमसेवी सरपराजअनाथभित्र (६६०) बघेलवशवर्णन । रामभक्त शिरताज जे, महाराज विश्वनाथ ॥ करन अनाथ सनाथ पद, पुनि पुनि नाऊ माथ ।। ६ ।। सवैया-भूपशिरोमणिश्रीविश्वनाथतनैरघुराजअनाथनिनाथै। श्रीयदुनाथकोभक्त अनूपमसेवी सदाद्विजसाधुनगाथै ॥ तेज तपै दिननाथसों जासु यश निशि नाथ दिपै महिमा तापद पाथजमें सुख साथ है जोरिकैहाथनवावतमाथै ॥ १ ॥ दोहा-पवनपूत जय दुखदवने, राम दूत सुखधाम ॥ शमन धूत सुकृपाभवन, बल अकूथ सब ठाम ॥७॥ जय कवीर मतिधीर अति, रति जेहिं पद रघुवीर ॥ क्षीर नीर सत असत कर,विवरण हंस शरीर ॥ ८॥ जय हार गुरु हरि दास पद, पंकज मोहिं भरोस ॥ जाकी कृपा कटाक्षते,मिटत सकल अफसोस॥ ९॥ संतत संतन भुसुरण, चरण कमल शिरनाय ॥ बार बार विनती करौं, सब मिलि करो सहाय ॥ १० ॥ रच्यो रामरसिकावली, ग्रंथ भूप रघुराज ॥ तामें बहु भक्तन कथा, वरण्यो भरि सुखसाज ॥ ११ ॥ भक्तमाल नाभा जुकृत, ताहीके अनुसार ॥ श्रीकबीरहू की कथा, तामें रची उदार ॥ १२ ॥ छप्पय जो कबीर बांधव नरेश वंजावाले भाखी ॥ अरु आगमनिर्देश भविष्यहु जो रचि राखी । सोउ समासे सहुलास तासु मैं वर्णन कीनो ॥ सुनत गुणत जेहिं सुकवि संत संतत सुख भीनो ॥ तोह तुम वरण विस्तार युत, शासन नृप रघुराज दियो । कह युगलदास धरि शीश सो, वर्णन हों आरंभकियो॥१॥ घनाक्षरी ।। अधम कबीरजी सिधारि पुरी मथुरा में संतन सहिल अति हरष बढ़ायकै ॥ वहां धर्मदास आय प्रभु पदपंकनमें बैठो बार बार शीश सादर नवायकै ॥