पृष्ठ:बीजक.djvu/७०

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                  आदिमंगल
                              (१९) 
      दो०-मङ्गलउतपतिआदिका, सुनियो संतसुजान ॥ .
       कह कबीरगुरुजाग्रत, समरथकाफुरमान ॥२५॥
सो अदिकी उत्पत्तिका मङ्गल हमयह कह्योहै सो हेसंतसुजानौ सुनत जाइयो । हम आपनो बनायकै नहीं कह्योहै हम यह मङ्गल गुरुकहे सबते श्रेष्ठ औ तीनोंकालमें जाग्रत कहे ब्रह्ममनमायादिकनकेभ्रमतेरहित ऐसेजे समर्थ सत्यलोकनिवासी श्रीरामचन्द्र तिनको फुरमान कहे उनके हुकुमते मैं कह्यों है औ सबके पर साहबहैं औ साहबकोलोकहै तामंप्रमाणआदिवाणीकोशब्द ॥ “बलिहारी अपने साहबकी जिन यह जुगुति बनाई । उनकी शोभाकेहि बिधि कहिये मोसों कही न जाई ॥ बिनाज्योतिको जाँ. उजियारी सो दरशे वहदीपा । ‘निरते हंसकैरेकौतूहलवाहापुरुषसमीपा ॥ झलकै पदुम नाना विधिवानी माथे छत्रविराजै । कोटिनभानु चन्द्रतारागण एक फुचारियन छाजै ॥ करगहिबिहँसि जबैमुखबोलैतबहंसा सुखपावै । वंशअंश जिन बूझ बिचारी : सो जीवनमुकतावै । चौदहलोकवेदकामण्डल तहँलगकालदोहाई । लोक वेद जिन फंदाकाटी ते वह लोक सिधाई ॥ सौतशिकारी चौदेहपारथ भिन्नभिन्ननिरतवै । चारशैशाजनसमुझि बिचारी सोनविन मुकतावै ॥ चौदहलो क बसै यम चौदह तहँलगकाल पसारा । ताके आगे ज्योति निरंजन बैठे सुन्नमझारा ॥ सोहखंड अक्षरभगवाना जिनयह सृष्टिउपाई । अक्षरकला सृष्टिसे उपनी उनही माहँ समाई ॥ संत्रहसंख्यपर अधरदीप जहँ शब्दातीत बिराजै । निरतैसखी बहूबिधि शोभा अनहदबाजाबाजै॥ताकेऊपर परमधामहै। भरम न कोई पाया । जोहमकहीनहीं कोउमानै ना कोई दूसरआया ॥ वेदनसाखी सब जिउअरुझेपरमधामठहराया । फिरि फिर भटकै आपचतुरद्वै वह घर काहु नं पाया ॥ जोकोइहोइ सत्यका किनका सोहमका पतिआई । औरन मिलैकोटि करथाकै बहुारकालघरजई। सोरहसंख्यकेआगे समरथ जिननग माहिं पठवाया । कहै कबीर आदिकीबाणीवेद भेद नहिंपाया ॥ २५ ॥

१ सात सुरति । २ चौदह यम । ३ चारवेद । ४ सोरह कलाजवकी ।५ सत्रहत्त्व सूक्ष्म शरीरके ।