पृष्ठ:बीजक.djvu/७०४

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बघेलवंशवर्णन।
कहे नाथ भल कोन सलाहा । हमरे उर महान उत्साहा ।। पुनि विरसिंहदेव मुद भरिकै । वीरभानु युत मज्जन करिकै १६ दोहा-वेणीमें बहु दान दै, युत सन्मान द्विजान ॥ लै सँग सैन्य पयान किय,विपुल बजाय निसान५२।।
कवित्त।

।। सोहत सवाव लाख संगमें सवार लोने युग लाख पैदरहु गौने जासु साथमें ।। वेशुमारगज त्योंहीं सुतर अपार राजे यहीं कैंच करि भरे आनँदके गाथमें है बिच बिच पंथ वास करि बांधवदुर्ग,पास आय नीचे डेरा कियो धारे अखहाथमें।। विरसिंहदेव जाय लषणकी पूजा तहां करि सविधान धान्यो पद् जल माथमें।। १ ।। स०-सादर साधुन विप्रनको नृप छिप्र भली विधि बोलिजेवाय फारसबै जुमदारन औ भुमियानको अपने पास बोलायो । ते सब आय सलाम किये दिये भेट कह्यो नृप वैन सोहायो । डेरा करो सब जाय सुखी दियो दण्ड तेहीं जो बोलाये न आयो दोहा-साँझ समय दरवारको, सादर सबहिं बोलाय ।। | कह रै यत तुम शाहकै, सुनहु सबै चित लाय ॥२३॥ | कवित्त । शाह यह राज्य हमैं दिया है उछाह भरि प्रथम समीति वैन सबसों बखाने हैं। रीति या बघेलवंशका है कोध ठाँनै नाहिं येतेहुँ पै कोई जो न हुकुमको मानै हैं । युद्ध करिवेको जो तयार होत ताको हम बाघही है क्रुद्ध हुँकै आसनको ठाने हैं । ऐसे अवनीशवैन सुनि सुनि शीशनाय कहे हम रावरेके रैयत प्रमानै हैं ॥ १ ॥ सोरठा-ईश्वर आप हमार, हम सेवक हैं रावरे ॥ सुनि गढ़भूप उदार,आयो विसिंहदेव ढिग॥५४॥

कवित्त

।। तेग धारि आगे विनय कियो अहैं बाल हम आपहैं हमारे पिता पालैं प्रीति ठानिकै।। सुनि विरसिंहवेव बाहँ गहि पुत्र कहि लीन्ह्या बैठाय उर महामोद मानिकै ॥ कह्यो पुनि तूते वीरभानुके समान मेरे कह्यो पुनि सोऊ पाणि जारि सुख सानिकै॥ महाराज किला चलि बैठें राज्य आसनमें करों सोई दीजिये निदेश दास जानिकै?