पृष्ठ:बीजक.djvu/७१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(६८६ ) बघेलवंशवर्णन । ऐसे शिष्य आप जिनके तेतो संत विशेशू ॥ जल स्वामिाह इतै न लावो ताल मम सुत काहीं॥ भक्तिभेइ तुमहीं दरशाव करी सुकृपा उरमाहीं ॥४॥ पुनि सुत श्रीरघुराज नाभको एक वाग लगवायो । लक्ष्मण बाग सुनाम तासुको युत अनुराग धरायो । अति उतंग आयत विचित्र हरि मंदिर यक अभिरामा॥ निरखत प्रदमुददाम जननको बनवायो तेहि ठामा६॥ श्रीरघुराज सुदिवस माह पुनि उर उछाह अति धारी॥ थापित किय सिय राम लषणकी मूरत तहँ मनहारी॥ औरहु अमित देवके प्रमुदित सादर तहँ बैठायो । दान महान द्विजन है संतन कर सत्कार सोहायो ६॥ विश्वनाथ पितु पद शिरधर पुनि विनयकियोकर जोरी पूरणभो प्रसाद यह तिहरे अब यह इच्छा मौरी ॥ पठइय प्रभु लक्ष्मी प्रपन्नको ब्रह्माशिलामें जाई ॥ ७ ॥ बोलिलै आईं सपदि स्वामिको लेहुं मंत्र हरषाई ॥ वैन सुनत सुतके सचैन है विश्वनाथ नरनाथा ॥ कह लक्ष्मी प्रपन्नसों, सादर जोरे दोऊ हाथा ॥ ब्रह्मशिला सुरसरि समीप जाँ स्वामि मुकुंदाचारी॥ वास करत तुम जायआशु तह लावहुतिन्हैं सुखारी८॥ दोहा-महाराज विश्वनाथके, सुनत वयन सुख पाय ॥ | द्रुत लक्ष्मीपरपन्न तब, ब्रह्मशिलागो धाय ॥ १२ ॥ • प्रभु ढिग चलि करि दंड प्रणामा । कुशल ऍछि पायो सुखधामा ।। विनय कियो पुनि दोउ कर जोरी । पुरवहु नाथ कामना मोरी ॥ बांधवेश विश्वनाथ नरेशा । रीवाँ रजधानी जेहिं वेशा ॥ राम अनन्य भक्त जगवीनो । राम परव ग्रंथ बहु कीनों ॥ प्रियादास में संत महाना । तासु शिष्य सो विदित जहाना ॥