पृष्ठ:बीजक.djvu/७१५

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। बघेलवंशवर्णन । (६८७) भक्ति ग्रंथ ते बहुत बनाये । ते सब आप वन निन गाये ॥ सो विशुनाथ तनय मतिवाना । है. रघुराजसिंह जग जाना । आप सों मंत्र लेनके हेतू । कीन्हे पण मन कृपानिकेतू ॥ दोहा-ताहि समाश्रय कीजिये, चलि रीवामें नाथ ॥ प्रभु कह मैं नहिं जाहुँ कहुँ, तजि तट सुरसरि पाथ॥१३॥ यह थल जो विहाय उत जैहौं । तौ अब परममाद नहिं पैहौं ॥ किय पुनि विनय सेव बहु ठानी । नाथ कह्यो पुनि सोई वानी ॥ सुनि लक्ष्मीप्रसन्न पुनि बोल्यो । निज अंतरको अंतर खोल्यो । नो प्रभु रीवानगर न जै हैं । तौ सति मोहिं निवत नहिं पै हैं । सुनिहासिकै कह दीनदयाला । जो अस तेरो अहै हवाला तौ अब आसु सुदिवस विचारी । तहाँ जानकी करें तयारी ।। सुनि लक्ष्मी प्रपन्न हरषाई । गणक बोलि द्रुत सुदिन शोधाई ॥ सादर प्रभुसों वचन बखाना । सुदिन आजु भल करियपयाना । दोहा-सुनत बयन प्रिय शिष्य बहु, ले संग संत अपार ॥ रीवांको गमनत भये, प्रभु हरि प्रेम अगार ॥ १४ ॥ म्यानामें प्रभु मध्य सोहाहीं । संत अनंत लसैं चहुँ घाहीं ॥ रामकृष्ण हरिमुख उच्चारत । चहूं ओरसे सेरपसारत ॥ जात जहां जहँ प्रभु पुर ग्रामा । होतं तहां तहँ शुचिनन ग्रामा ॥ यहि विधि आय स्वामि सुख छाकी । रीवां रह्यो कोस त्रय बांकी ॥ सुनि सुत युत नृप आगू लीन्ह्यो । हरिसम बहु सत्कारहिं कीन्ह्यो । पुनि रिवहं लायो युत रागा । वास देवाय लछिमन बागा ॥ मंदिर निरखि मुकुंद। वारी । कह्यौ रच्यो भल मंदिर भारी ॥ कछु वासर करिकै सुख वासा । पुनि मख ठान्यो कृपानिवासी ॥ दोहा-रंभ खम्भ गड़वाय कार, हरिमनु द्विजनजपाय ।। | सुदिन सोधायसचाय प्रभु, अति उत्सव सरसाय॥१५॥ विश्वनाथ नरनाथ समेतू । बोलि कुवँर रघुरान सचेतू ॥ नारायण मनु किय उपदेशा । हरयो सकल कलिकलुष कलेशा ॥ भई समाश्रय तासु तिया सब । पूरि रह्यो पुर पर प्रमोद तब ॥