पृष्ठ:बीजक.djvu/७१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

बघेलवंशवर्णन। (६९१) | दोहा-विश्वनाथ नरनाथ तब, कह्यो भरे उत्साह ॥ . | जाडु उदयपुर व्याह हित, मेरो इहै सलाह॥ ३५ ॥ बोलि ज्योतिषिन तुरत पुनि,गमनन सुदिन बनाय॥. ह्यो सुवनसों यह भली,साइत दियो बताय॥ ३६॥ सुनि रघुरान कह्यो हपई । दीनै सब तदबीर कराई ॥ कौन देवान जान सँग योगू । ताकीँ दीनै नाथ नियोगू ॥ कौन कौन सरदार सुजाना । मेरे सँगमें करहिं पयाना ॥ नाथ कृपा करि सादर सोई । देहिंबताय सिद्धि सब होई ॥ भाष्यो महाराज सुख पाई । सभा सदनको सपदि सुनाई ॥ वीर धीर अरु होय उदारा । राज काजमें चतुर अपारा ॥ धर्मवान् पूजक भगवाना । दिन साधुनमें प्रीति महाना ॥ स्वाभिहि मानै प्राण समाना । ये लक्षणहैं विदित देवाना ॥ दोहा- लक्षणयुत सांच अब, दीनबंधु तुव पास ॥ लेडसाथ तिनको अवशि,तिनते सकल सुपास ॥ ३७॥ हैं सरदार सुजान सब, सावधान तुव सेव ॥ तिजको सबको लेहु सँग, जे जनित रणभेव ॥ ३८॥ सुनि रघुराज जनकके वैना । दीनबंधु कहँ बोलि सचैना ।। पुनि सरदारन निकट बोलाई । चतुरंगिणी चमू सजवाई ॥ • सैनप : दीनबंधुको कारकै । व्याह पोशाक किये सुखभारकै ॥ बाजिरहे चहुँ ओर नगारा । वंदीजन वर विरद उचारा । लहि रघुराज प्रमोद अपारा । भयो उतंग मतंग सवारा ॥ औरहु सखा वृद्ध सरदारा । चढ़ि चढ़ि हय गय रथनमॅझारा ॥ हरि गुरु गणपति हनुमतकाहीं । सुमिरि सुमिरि सब निज मनमाहीं॥ गहि गहि अस्त्र शस्त्र निजहाथा । गमनत भये सबै यक साथा ॥ दोहा-जे मगमें भूपति परे, तिनस लहि सत्कार ॥ निकट उदयपुर जब गये, राना सुन्यो उदार ॥ ३९ ॥