पृष्ठ:बीजक.djvu/७२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

-करिशुरुधाम बघेलवंशवर्णन । (६९९) दोहा-सहित सैन्य चतुरंगिणी, तहते करि सु पयान ॥ सेवरी नारायण निकट, जातभयो मतिमान ॥ ६८॥ सेवरीनारायण करि दर्शन । किय सहस्र मुद्रा कहँ अर्पन ॥ तहँते प्रभु पयान करि आसू । पहुँच्यो साक्षिगोपालहि पासू ॥ मुद्रा सहस गयंद सुहायो । दर्शन बैंकै तिन्हैं चढ़ायो । है सबको तिमि द्रव्य महाना । सादर चढ़वायो भगवाना ॥ पंडा गाड़िन लादि प्रसादा । लाय दिये लै युत अहलादा ॥ महाराज सबको विरताई । खायो स्वाद अपूर्वं सुनाई ॥ श्ररिघुराज परमसुख भीनो । तहते पुनि पयान द्रुत कीनो ॥ जगन्नाथ मंदिरके ऊपर । नीलचक्रपरश्यो जब अघहर ॥ सोरठा-कोर दंडवत प्रमाण, कीन्ह्यः पुरी प्रवेश प्रभु ॥ डेरा किये गुरुधाम,रानिन साहित हुलास भरि॥ दोहा--तते गमनतभी तुरत, दर्शन हित जगदीश ॥ अरुण खम्भ ढिग द्वार में, जात भयो अवनीश॥ ६९॥ रकब चारया दिश बन्यो,मंदिर मध्य उतंग ।। लसत दुर्ग सो उदधि तट, तकस करत अघ भंग ॥१०॥ प्रथम अकेले अपह, युत भाइन सरदार ॥ सादर भीतर द्वारके, जाय नरेश उदार ॥ ७१ ॥ घनाक्षरी । । जगपति मंदिरके चारों ओर देवनके मंदिर सुखद तिन दरशकै सुखकारि ॥ सहित समाज परदक्षिणकै चारि फेरि मैदिर सिधारि शिरनाय खम्भ पन्नगारि॥ जाय कछु निकट सुभद्रा बलभद्र युत सछवि मुरारि वार वार नैन सो निहारि॥ वारि मन प्रथम सँभारि तनु सुधि फेरि पलक नेवारि हेरि रहे धन वारि वारि ।। स० आजुभयो सफलो मम जन्म गुन्यो यह जन्ममें पुण्य बढ़ाया जानि लियो कियो पूरव जन्महुँ पुण्य महान विशेष सुहाथों ॥ न दि