पृष्ठ:बीजक.djvu/७३

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६ २२) बीजक कबीरदास । रकहै सुनैौरेभाई । सतगुरुपूछिकैसेवहुआई:॥२॥ इत्यादिक बहुत वाक्यहैं। यहफलहै।औ अर्थबाद कबीरजी तो साहबके पासके हैं उनको संसारका कौन डर है यह प्रशंसा करै हैं याते अर्थबादभयो । “डरपतहा यहझलिबेको राखुयादव राय । कहकबीरं सुनु गोपाल बिनती शरण हारतुवपाय ॥ ॐ प्रकरण में प्रतिपाद्य जॉहै कि रामनामैकोनानैहै सोई छुटिजायहै औने नहीं जाने हैं औरऔरेमतनमें लगे है तेईसंसारी होयहैं यहबात दृष्टांतदैकै रामनामही को दृढ़ किया है। राम नाम बिन मिथ्याजन्म गॅवाईहो । सेमरसेइसुवाजोजहँड्यों ऊनपरेपछिताईहो ॥ ज्यों मदिपगांठ अंरथैदै घरहुकी अकिलाँवाईहो । स्वादहुउदरभरैजो कैसे वोसहिप्यास न जाईहो' ।। इत्यादिककहरामें लिख्यो है। यह उत्पत्तिभई। येई पट्टलिंगहैं ने इनको देखिकै अर्थकरै हैं सो सत्य है,जे इनको नहीं जार्निकै अर्थकरैहैं वहग्रन्थको तात्पर्य औरहै और अर्थ कैरैहै सो अनर्थहै । जैसे बीजकको कोई निराकार ब्रह्ममें लगावैहै कोई जीवात्मामें लगावै कोई नये नये खामिन्द बनाइकै अर्थलगाँवैहै इत्यादि । वेमनमुखी अपने अपने मनते नाना मतनमें अर्थलगाँवैहैं ते अनर्थ हैं अर्थनहीं हैं । वेगुरुजे हैं सबते गुरु परमपुरुष श्रीरामचन्द्र तिनके द्रोहीहैं ताते प्रमाण ॥ “गुरुद्राही औमनमुखी नारपुरुष अबिचार । तेनरचौरासीभ्रमहिं जबलगिशशिदिनकार' ॥ १ ॥ अरु हम जो बीजकको यह अर्थ करैहैं तामें छइउलङ्ग श्रीरामचन्द्रमें घटितहैं तेहितेजो अर्थ हम करैहैं अनिर्वचनीय श्रीरामचन्द्रको प्रतिपादन सोई ठीक है काहे ते कि जहांभारप्रभुहैं तिनहूँके प्रभुहैं तौनेमें प्रमाण बाल्मीकीयको ॥ “सूर्यस्यापिभवेत्सूर्योह्यशेरग्निःप्रभोःप्रभुः । अर्थ जोयेईसूर्यमें येईअग्निमेंअर्थलगाँवै तै। पुनरुक्तिहोयहै काहेते जबबड़ोप्रकाशमान सूर्यको कह्यो तब अग्नि को कहिवे को है। तातेयहअर्थहै जो कर्मनमें लोकनीकी प्रेरणाकैरै सोकहावै सूर्य अर्थात् अन्तर्यामी औसबकेआगेरहतभयो यातेअग्निकहाँवै ब्रह्मसोसूर्यकै सूर्यकहै अंतर्यामीके अंतर्यामी औ अग्निकहे ब्रह्मकेब्रह्मअंतर्यामी पारछिन्नहै तातेबड़ो ब्रह्महै जो सर्वत्र पूर्ण औपरिछिन्नहै ताते बड़ोजाको प्रकाश यह ब्रह्लहै जामें सबजीव भरे रहेहैं ऐसोसाहबकोलोकहै सबकोपभुपरब्रह्मस्वरूप ताहूकेमभुवह लोकके मालिक श्रीरामचन्द्रहैं । वहब्रह्मजोहै साई मनबचनके परेंहै पुनिजाको वो प्रकाशहै ब्रह्मसोलोककैसेमन