पृष्ठ:बीजक.djvu/७३३

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करि सलाम दोउ परस्पर, पूंछतभै कुशलात ॥ कहे कुशल सब भांति दोउ, बार बार हरषात ॥८४॥ वाम हाथ गहि दहिने हाथै । गयो लेवाय लाट सुख साथै ॥ तख्त उपर बै कंचन कुरसी । धरवायो जु हुँनपति हुलसी ॥ तामें अपने दहिने ओरै । नृप बैठाय बैठ सुख वोरे ॥ नीचे तख्त सैकरन कुरसी । धरवावतभो साहेब विलसी ॥ तिनमें काशी चरकहरीके । रहे जे और भूप अवनीके ।। औरहु जेमींदार सरदारन । बोलि पठायो आये तेहिं छन । तिनको तुरत तहां बोलवाई । दै ताजीम सबै सुखदाई ॥ क्रम क्रमते दीन्ह्यो बैठाई । बैठे ते सब शीश नवाई ॥ दोहा--मंत्री मुख सरदार जेहिं, दियो अजंट लिखाय ॥ नृपं सँग चलि तेहिं क्रमहिते, कुरसी बैठे जाय॥८६॥ निकट हुँनपतिके जबै भई सभा यहि भांति ॥ अति प्रसन्न रघुराज पै, भयो लाट मुदमात ॥८६॥ तेहि पितु किस्ती नै लागि आई । तिनते अधिक तीनि लगवाई ॥ भूषण वसन विचित्र अमोले । तिनमें धरि धरि दियो अतोले ॥ पूर्व सलामी पंद्रह जोई । लाट हुकुम दिय दशवसु होई ॥ सानु नवीन भांति बहु सानी । दीन्ह्यो यक गयंद वियवाजी ॥ परगन दिय सोहागपुर नामा । होत लाख मुद्रा जेहिं ठामा ॥ जानि भूपको मुख्य सचिव चित । कियो पराक्रम गुनि हमरे हितं ॥ . दीनबंधु पै है प्रसन्न अति । खिलत तोपयुत दियो हुँनपति ॥ | पद दीवान बहादुर केरो । दियो लाट करि मान घनेरो ॥ दोहा-पुनि नृप सँग सरदार जै, गये तासु दरबार ॥ यथा उचित तिन सबनको, दीन्ह्यो लिखित अपार ८७ क्रमते पुनि सब नृपनको, दीन्ह्यौ खिलत सराहि ॥ ते शिर धरि धरि लेत , है मन परम उछाहि ॥८८॥