पृष्ठ:बीजक.djvu/७३८

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(७१० ) बघेलवंशवर्णन । ते सब सुयश भूपको गावत । निजःनिज गृह गवने सुख छावत ।। फेरि आपने शिबिर सिधारी । महाराज रघुराज सुखारी ॥ रहे जे बाकी औरहु पंडित । सकल शास्त्रमें अतिहीं मंडित ॥ सादर तिनको, निकट बोलाई । करि सन्मान सभा बैठाई ॥ दुइ दुइ मोहर और दुशाले । देतभयो युत प्रीति विशाले ॥ त्यउ सब गावत सुयश भुआला । दै अशीश गृह गये उताळा ॥ हा-कहत परस्पर बात यह, जात पंथ हरषात ॥ सभान किय अवदात असि,कोउ नृप व्रात विख्यात॥९॥ रहे घाटियो विप्रजे, काश कइक हजार ॥ सुवरण तनु तिनके किये, सुवरण वितरि अपार॥२१०॥ हाट हाट हाटक विपुल, भयो बनारस सस्त ॥ रस्तन रस्तन बागते, पंडित मोहर मस्त ॥ ११ ॥ रहे जे संत महंत तह, संन्यासी विख्यात ॥ सादर तिनको दरश लिय, दे धन बहु सहुलास ॥१२॥ देहरी बीस हजार हैं, काशी विप्रन केरि ॥ नृप तिनके सत्कार हित, नीके मनहिं निवरि ॥१३॥ पाँडे नंदकिशोर सिंह, ईश्वरजीत बघेल ॥ तिमि शहजादहुँ सिंहसों, कह्यो धर्मको वैल ॥१४॥ हम अब रीवहिं जात, रुपया बीसहजार ॥ लै देहरी सब द्विजन ६, अइयो निजहि अगार ॥१५॥ अस कहि भूपरि भोरही, तहँते तुरत पधारि ॥ निज पुरको आवतभयो, करि दरकुँच सुखारि ॥ १६ ॥ उततनों जन काशि वासि, विप्रन सहित विवेक॥ - दीन्ह्यो गनिं देहरीनको, फरक पन्यो नदि नेक ॥ १७ ॥ कवित्त ।। राना राठि उहाडा बडे कछवाह राजा आय आय कीन्ही सभा कै धन राशी है। दक्षिणके सूबा जे करोरिनके राज्यवारे आय तेऊ सभाकै सुकीरति प्रकाशी है !