पृष्ठ:बीजक.djvu/७४६

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(७१८) बघेलवंशवर्णन । शम्भुशतक जगदीशहु शतकै । विरच्योतुमसुनि जेहिं बुधसुङकै ॥ जस तुम भक्त अहौ नारायण । तस ईश्वरीप्रसाद नरायण ॥ जस पूरण सुख तुमते भयऊ । तैसहि उनहूँ ते सुख ठयऊ । नृप पछाहियनमें कछु रूरो । बूंदी नृपति जानते पूरा ॥ तेहिके आये भो सुख आधो । तुम सम कोउ न कृष्ण अवराधो । अति प्रसन्न करि दण्ड प्रणामा । गमन्यो पुनि भूपति सुखधामा ॥ सकल देव संतन गृह जाई । यथा योग बहु द्रव्य चढ़ाई ॥ रामनगर गो सुरसार पारा । गो लेवाय सो नृपति उदारा ॥ दोहा-रामराजसिंहकोसतिय, घर दिय पटै ससैन । आपरेल चढ़ि आयकै मिरजापुराहसचैन । ५१ ।। पुनि बग्घी असवार है, सेन्यसहित सुख पाय ।। रीवांको आवत भयो, लै संपति समुदाय ॥ ५३॥ बंधु कसौटाको विदित, वंशपती महराव ॥ महाराज सो यक समय, विनय वचन मुखगाव॥५३॥ नाहक हमें अशुद्ध जग, कहत अहैं सब लोग ॥ विमुख आपते जो भये, यहां बड़ो उर सोग ॥ ५४॥ स.-आपाहके हम करुणानिधि आप जोलीजियेमागहिपानी तौ अहिती हमरे जे अहे जे असत्य बतात तिन्हैं परै जानी॥ दीजिये भात कृपाकारकै सुधरै भमलीजिये सत्य या मानी ॥ श्रीरघुराज कह्योहँसिकै यदुराज सुधार है सात वानी॥१॥ दोहा-भात देत सुनि नृपाहिको, बरजें बह जन वृंद ॥ महाराज कह मानि, कहिहैं जस गोविंद ॥ ५९॥ अस कहि यक कागज लिख्यो, यह अशुद्ध नाहि ॥ अशुद्ध अहैं यह यक लिख्यो, धरि दीन्यो इरि पाहिँ५६ नयन बँदि जगदीश ढिग, पंडा तुरतहिं जाय ॥ ले आयो कागज सोई, यह अशुद्ध नाहिं आय ॥५०॥