पृष्ठ:बीजक.djvu/७५०

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बघेलवंशवर्णन । । निहारी है। भयो युगलेश कछ इस भगत पधारे एक (७२०) कवित्त ।। महादेवनीके सम देव नर दानवमें भयो ना त्रिलोकी माहिं राम भक्त धारी सायबेष कीन्ही सती ताहि त्यागि दीन्ह्यो जौन दक्षकी सुता जा रही माणनते प्यारी अब कलिकालतो कराल या कलुषमयो तामें वैसोहोय नहिं परत निहारी है। महाराज विश्वनाथ तनै रघुराज वैसो भयो युगलेश कछु कहत उचारी है॥१॥ छीतूदास भगत पधारे एक समै रीवां कातिकते फागुनलों रहे सुख छायंकै । फगुवाके रोज रैन निकसे बनार मग राम सिय लषणको गनमें चदायकै ॥ दीनबंधु धाम ढिग एक बनियाको घर रह्यो तासु सुत ॐ खलनादी चळायकै।। चौंकि उठ्यो गज झूल नरी डोलि उठे द्रुत कोऊ जन जाय कह्य नृपको सुनायकैर दोहा-भोर होत तेहिं वणिकको, भूपति लियो लुटाय॥ ६ हजारको वसनतहिं, लीन्ह्यो तुरत भंगाय॥ ६३ ॥ आधे आधे सो दियो, मोहन दशरथ का ॥ दीनबंधु सो सुनि कियो, वणिक सहायतहाँ६॥ ६४ ॥ वणिक पुत्र भगिजातभो, छातूदासहि पास ॥ आय भक्त महराज ढिग,शासन दिय सहुलास ॥६५॥ क्षमि आगस यहि वणिकको, दीजै लुटि देवाय ॥ कुटी सिधारव काल्हि हम,सुनि बोल्यो नरराय ॥६६॥ वह भगवत भागवतको, कियो महा अपराध ॥ याको देन न कहिय प्रभु, और न होई बाध ॥६॥ यहि अपराधी वणिकको, कीन्ह्यो जन सहाय ॥ उचित दंड सोउ पायहै, यह प्रभु देहि सुनाय ॥६८॥ पुनि जिन कुटी भक्त पगु धारे । महाराज उर अति मुद धारे ॥ परममित्र मंत्री यशवारा। रह्यो जोन माणनको यारा ॥ मुख्य देवान कह्यो जेहिं काहीं । लाट खिलत दीन्ह्या मुदमाई । ताहूको गुण वणिक सहाई । कामकाजतेदियो डाई ॥ रहे जे कामकाजि तेहि संगा । तिनहुँ छोड़ाय दियो सुमंगा ॥ दक्षिण देउरा नगर लामा । तहँ जहि थान भी सुनामी ॥