पृष्ठ:बीजक.djvu/७५१

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बघेलवंशवर्णन । (७२१) लालशिवबकशसिंह तेहि नामा । धीर वीर अतिहीं मतिधामा ॥ तासु अनुज भगवतसिंह तैसे । वचन जासु अंगद पग कैसे । तेहिं शिवबकश सिंह सुत रूरो । लालरणवनसिंह गुण पूरो ॥ कैयक अनुज तासुके जानो । तिनमें दिरगजसिंह सुजानो ॥ लालरणद्वनसिंह पर प्रीती । कॅरि रघुराज मीत गुणि नीती ॥ सकल बघेलखंड जो राजी । कियें मुखतार परम द्वै राजी ॥ दोहा-माधवगढ़ ढिग पार सरि, कछिया टोला गाउँ॥ नाउँ जासु दिलराजसिंह, मालिकहै तेहिं ठावें ॥ ६९॥ अमरसिंह कल्याणसिंह, तासु सुवन गुणग्राम। महाराज परसन्न है, तिनहुँको दिय काम ॥ २०॥ वीकेधवा सिंहको, कोष काम करिदीन ॥ देशी परदेशी बहुत काम दियों सुखभौन ॥७१॥ तिन सबको मुखतारके, भूपति किय अधीन ॥ ते सब अबलों करतहैं, काम लोभते हीन i७२॥ छंद-यक काल अकाल कराल परयो । विन अन्न दुखी बहु जीव मन्यो । महमें कैंगला सहसान जुरे ॥ सरि औसर राहन रोज फिरे ॥ १ ॥ वहु पर्गन बांधवदेश ठये ॥ विन अन्न दुखी सब जीव भये ॥ रघुराज गरीबनेवाज महा॥ दिय अन्न तिन्हैं मुदमें उमहा ॥२॥ अंगरेज जौन निदेश कियो । रुपया तेहिं पंचसहस्र दियो । जोहं औरेहु देशनके कॅगला ॥ विन अन्न न शोक ल अचला ॥ ३ ॥