पृष्ठ:बीजक.djvu/७५२

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(७२२) बघेलवंशवर्णन। दोहा-झुर अन्न केतन दियो, केतेन दै पक्वान ॥ केतनको पैसा दियो, केतेन मुद्रादान ॥ ७३ ॥ सोरठा-जौल रह्यो अकाल, लाखन रुपया खर्च करि ॥ किय दीनन प्रतिपाल, को कृपालुरघुराज सम॥१॥ कौन गरीबनेवाज, महराज रघुराज सम ।। छायो सुयश दराज, समुद्रतल अवनि तल ॥ २॥ सवैया-तीक्षण जासु प्रताप दिनेशको आतप तेज महीप सरै॥ तापित है रिपु तासु महेश कलेशित वासु अरण्यकरै ॥ भाषत युगलेश सही यह मानै उमें विशेष नरै ॥ श्रीरघुराज नरेशके देशन शीतको पेस करै पसरै॥१॥ महाराज रघुराज सपूती । है अपूर्व जिनकी करतूती ॥ पितुते अधिकै राज्यबढ़ायो । पितुते अधिकै द्रव्य कमायो । पितुते अधिक कोष किय भारी । भूपति श्रीरघुराज सुखारी ॥ एक अनूपम शहर बसायो। गोविंदगढ़ तेहिं नाम धराया ॥ रीवांमें जस रहे मकाना । तिनते अधिक तहां निरमाना ॥ ताल विशाल एक बनवाया । विश्वनाथ नृप नाम सुहायो । जाके तार तीर सरमांहीं । विरचायो बहु मंदिर काहीं ॥ तिनमें रघुपति यदुपति मूरति । पधरायो परिकर युत अति रति ॥ दोहा-प्रति उत्सव जो करतहैं, साधुन सेवा वेश ॥ सीयव्याह उत्सव तां, करत नरेश हमेश ॥ ७४ ॥ छीतूदास सुसंत यक, सादर तिनहिं बोलाय ॥ करत व्याह उत्सव सुखद,अगहन मास सोहाय॥ ७९ ॥ संत महंतहुँ विम अपारा । जुरें नारि नर कइक हजारा ॥ तिनको विविध भांति सन्मानी । वांछित अशन देत रति ठानी ॥ मांडव रुचिर रचाय उछाहा । सीय रामको करत विवाहा ॥ " सबको मंडप, तर बोलवाई । सादर विदा करत हरषाई ॥