पृष्ठ:बीजक.djvu/७६२

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सूचना। वीज सूक्ष्म कारण जिसे, गावत हैं बुध वेद । तेहि जानन को युक्तिसो,बीजक नाम अखेद॥ बीजक लीन्हा हाथमें, पाया धन सोइ शोध । ताते बीजक नाम है, भया सवन के बोध ॥ बीजक लीन्हे हाथमें, सूझे नहीं धन धाम । मुक्ता धन पाये बिना, बीजक सबै निकाम ॥ याकी टीकानेकहैं, बहु विधि कथ्यो सिद्धान्त। विश्वनाथ नृप रामरत, जान्यो यह वृत्तान्त ॥ राम प्रत्यय टीका करी,बहु पाण्डित्य तेहि माहि। पढ़े विचारे जाहि को, राम भक्ति जन पाहि ॥ चिन्तामणि अरुकल्पतरु,शब्द जगतके महि । अपनी अपनी भावना, सबही पावत जॉहि ॥ राम उपासना दृढहुते, रीवाँ नरेश सुभूप । अपनी मनकी भावना, वर्णन कीन्ह सुरूप ॥ तेहि ग्रन्थको शुद्ध करि, कहुँ २ टिप्पण दीन । युगलानन्द मोहि कहत हैं, क्षमियो परम प्रवीन । संदिग्ध ठौर जेते रहे, टिप्पणी करी बनाय।। बाकी अब कछु होयजो, लीजो संत सजाय ॥ गुरु थल हाती जानिये, शिवहर जन्म स्थान । भारत पथिक मोहि कहत हैं, पंथ कवीर न आन ॥ श्रीवेङ्कटेश प्रेसवर, प्रसिद्ध सकल जहान । तामें छप्यो या ग्रन्थ है, सबको सुखद समान ॥ इति श्रीकबीर साहब कृत बीजककी पाखण्ड खण्डनी टीका रसीदपुर ( शिवहर) वाले स्वामी युगलानन्द कबीर पंथी भारत पथिक द्वारा संशोधिता समाप्त हुई ।