________________
(२८)
बीजक कबीरदास ।
होय ते सनातनज्योति है अयोध्यानीको प्रकाश बही ब्रह्म जहां पूर्वलीन रहै है तैहैं जाय लीनहोय। ॐ जे श्रीरामचन्द्रको जानै हैं तेज्योति वह भेदिकै श्रीरामचन्द्रकै पास जायेहैं तामें प्रमाण ॥ ( सिद्धाब्रह्मसुखेममाँदैत्याइचहरिणाहताः ॥ तज्ज्योतिर्भेदनेशक्तारसिकाहारवेदिनः ॥ तामें कबीरजीको प्रमाण (जैसे माया मन मिल्यो ऐसेरामरमाय । तारामंडलभेदकै तेबैअमरपुरजाय ) ॥ औ धोखाको अर्थयहहै जो औरेको और देखे सो कौनॅहै कि, एक जाहै सर्वत्रपूर्ण लोकप्रकाशबह्म ताके अंतर कहे भीतर अनुरूप जेजीव ते समष्टिरूपते बास कियेरहे । सो अंतरज्योति प्रकाश कहे जब साहब सुरतिदियो सोई अंतरप्रकाश करतभई तबजीवको जान परनलग्यो चैतन्यता आई तब संकल्प विकल्पकियो कि मैं कौन हौं यही मनकी उत्पत्तिभई सो जीवकोरूपतौ ॥ ( बालाग्रतिभागस्य शतधाकल्पितस्यच । भागोजीवःसविज्ञेयः सचानत्यायकल्पते) 4 इतिश्रुतेः ।। तामें कबीरजीको प्रमाण-(बहुत बड़ा ना तनकसा, तनकी भी है नाहि । औरत मरद न कहिसके, औ रह सबही माँहि ॥)इत्यादिक प्रमाण करिकै वाको स्वरूप तो अणुहै सोते वाको न देखिपरयो सर्वत्र प्रकाशरूप ब्रह्मदेख्यो सो मान्यो कि महीं ब्रह्मह यही धोखा ब्रह्लह । जीव ब्रह्मविषयक शंकासमाधान।जो कहो जीव ब्रह्मते बने है जीव कहना यहीयाकी भूलहै । जब याको ज्ञानभयो ज्ञानते बिज्ञानभयो अनुभावानन्द प्राप्त भयो जबभर अनुभवानन्द बनेरहै है तबभर याको जीवत्वको लेश बनोरहै जब अनुभवानन्दरूप ही वैगयो तबयाको जीवत्व मिटिगयो संसारऊ मिटिगयो एक आपही आप रहतभयो ? तुमकैसे कहीहौ कि 4 जीवको ब्रह्महोना धोखाहै। जो ऐसे कहौ तौ सुनै ! जोपदार्थ बाचकोहोय है सो मिटिजायेहै औ जो पदार्थ सनातनहै सो नहीं मिटिजाय कैसे जैसे तुमकहाँही कि जीवत्व बीचहीको है वही ब्रह्म अनेकरूप धारण कैलिया हैं, एकते अनेक हाइगयोहै, जब जीवत्वको भ्रम मिटिगया तब ब्रह्मही रहजायेहै, जो प्रथम रह्यो। साईरहिजायहै । जो पदार्थ बीचको होय है सो मिटिजायहै। तैसे हमहूं कहें कि आदि में तो जीवरह्यो है सो जब संसार छुट्यो तब शुद्धजीवको जीवही रहि नायहै । जोकहो ब्रह्मही जीववैजायेहै तैौ .हम तुम सों या पूछे हैं कि प्रथम तो ब्रह्महीं