पृष्ठ:बीजक.djvu/८१

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(३०) बीजक कबीरदास । तामें प्रमाण ॥ “येन्येऽरविन्दाक्षविमुक्तमानिनस्त्वय्यस्तभावादविशुद्धबुद्धयः ॥ आरुह्यकृच्छ्रणपरंपदेततः पतंत्यधोनादृतयुष्मदंघ्रयः ॥ इतिभागवते ॥ तेहिते साहबके लोक प्रकाश में भरे जे जीव ततेब्यष्टि होतहै औ तहैं समष्टिरूप करि लीनहोतहै । अनादिकाल यहीक्रमहै । सो जैसोहम वर्णनकारआये हैं। ताही रीतिमें प्रकाशरूप जो ब्रह्लहै तामें निर्विकारत्वनिधर्मत्वादि जे वेदांतमें विशेषण ब्रह्मके ते बन रहेहैं औरीभांतिनही संघटित होयहै औ प्रकाशरूप जो ब्रह्महै सो निर्विकारहै निर्धर्म है अकर्तीहै, वाकी करी रक्षा जीवकी नहीं होयहै । दूनोंते परे जे साहब तिनको जोजानैहै, जानिकै उनके लोकको जाय है सो फेरि नहीं आवै। वे रक्षाकरिलेय काहेते वहां मन मायादिकन की गति नहीं है ॥ तामंप्रमाण ॥ यद्गत्वाननिवर्ततेतद्धामपरमं मम ।। औ जगतकी उत्पत्ति जो उपनिषदनमें लिखैहै सो समष्टिरूप जीवही ते लिखैहै। सोकहैं ॥ “सदेवसौम्येदमग्रआसीदेकमेवाद्वितीयं ॥ इतिश्रुतेः ॥ एककहे सनातीयभैदशून्य अद्वितीय कहे विजातीयभेदशून्य एवकारते स्वगत भेदशून्य यद्यपि सूक्ष्म भेद वामें बने हैं परन्तु समष्टिरूपकरिकै जीव एकहीरहै है । प्रलयमें अथवा जीवत्व करिकै एक रहै यह श्रुति सतनाम कैकै कहै ताते अनामा जोब्रह्म है तामें नहीं लगे है औ दूजी श्रुति है । “सऐक्षतएकोऽहं बहुस्याम् ॥ तनै जो है समष्टि जीव सो सुरति पायकै इच्छा करतभो कि, एकते बहुत होउं से या व्रह्माख्य जे समष्टि जीव ताहीमें लगैहै औ ब्रह्मपद यह समष्टि जीवहीमें घटित होय है काहेते बृहिवृद्धौ यह धातु है व्यष्टिते समष्टि लैजाय है समष्टिते व्यष्टिहोइजाये । औ वहजो लोकपकाश ब्रह्मएक रस न घंटै न बँडै तामें एकोऽहंबहुस्याम् या अर्थ नहीं लगै है। औ अनुभव कार आपनेको जो ब्रह्म मान्य है से तो धोखैहै नाममिथ्यॆहै । सो एकसो समष्टि जीव रूप सगुण ब्रह्म तौन औ एक लोक प्रकाश रूप निर्गुण ब्रह्म तैौनई दूनौते साहब परेहैं । औ मंगळमें पांच ब्रह्मकहिआयेहैं सोनारायणनेहैं साकार ते औ तिनके अंतर्यामीजे निराकारतत्त्वरूप नारायणते ई दूनों ने साकार निराकारहैं। तिनते साहब परे है औ निराकार साकार ये दोऊ साहबके शरीरहैं तामें प्रमाण “यामिच्छसिमहाराज तांतनुं प्रविशस्वकाम् । वैष्णवांतांमहातेजो यदाकाशंसनात