पृष्ठ:बीजक.djvu/९०

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रमैनी । (३९) शक्ति प्रकटभई औप्रथम ही जीव जॉहै सो अपनी उक्तिकरिकै उक्तदेवतनकी भक्तिकरत भयो अर्थात् नाना उपासना बांधिलेतभये ॥ २ ॥ प्रकटेपवनपानीऔछाया । बहुविस्तारकैप्रकटीमाया ॥३॥ प्रकटेअंडपिंडब्रह्मण्डा। पृथिवीप्रकटकीननवखण्डा ॥४॥ वे जे ब्रह्मादिकहैं ते अपने अपनो ब्रह्माण्ड करतब करतभये तेहिसे पवन पानी औछाया बहुतबिस्तारकैकै मायाप्रकटभई । औचारि जे खानिहैं अंडज पिंडज स्वेदज उद्भिज प्रकट भये जे ब्रह्मांडमें हैं औ नवखण्ड पृथ्वी प्रकट भई ॥ ३ ॥ ४ ॥ प्रकटेसिधसाधकसंन्यासी । ईसवलागिरहेअबिनासी॥॥ प्रकटेसुरनरमुनिसबझारी । तेऊखोजिपरे सबहारी ॥ ६॥ औ सिद्धसाधक संन्यासी प्रकटहोतभये ये संपूणजे हैं ते अबिनाशीमें लागिरहे हैं अर्थात् अबिनाशीको खोजैहैं ॥ ५ ॥ औसुरनरमुनिसब झारिकै प्रकटहोत भये तऊ अबिनाशीको खोजत खोजत हारि परे तिनहूँ न पायो ।। ६ ।। साखी ॥ जीव सीव सब प्रकटे, वे ठाकुर सवदास ॥ कबिर और जानै नहीं, एकरामनामकी आस॥७॥ जीव औ सीव कहे ईश्वर सो सब प्रकटे से ईश्वर त ठाकुर भयो । सब जीव दासभये । सोकबीरजी कहै हैं कि हमतो दूसरोकाहूको नहीं जानै हैं न अविनाशी निर्गुण ब्रह्मक जानै, न सगुणईश्वरन को जानै । निर्गुण सगुण के परे जे श्रीरामचन्द्र तिनके एक रामनामकी हमार आशौहै कि वही हमारो उद्धार करेगा अथवा कबीर कहै काया के बार जाव ! और कई तैनाजानु एक रामनामही को जानु यही संसार ते छोड़ावैगो ।। इति तीसरी रमैनी समाप्तम् ।।