पृष्ठ:बीजक.djvu/९१

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( ४० ) बीजक कबीरदास । अथ चौथीरमैनी। चौपाई। प्रथम चरणगुरुकीन बिचारा । करतागावै सिरजनहारा॥१॥ कमै करिकै जग बौरायाशक्ति भक्तिलै बाँधिनिमाया॥२॥ अद्भुतरूप जातिकी बानी।उपजी प्रीति रमैनी ठानी ॥३॥ गुणिअनगुणीअर्थनहिं आया।बहुतकजनेचीन्हिनहिं पाया जो चीन्है तेहि निर्मल अंगा।अनचीन्हे नल भयेपतंगा॥५॥ साखी ॥ चीन्हि चीन्हि कह गावहू, बानी परी न चीन्हि॥ आदि अंत उत्पति प्रलय, सब आपुहि कहि दीन्हि॥६॥ प्रथमचरणगुरुकीनविचारा। करतागावैसिरजनहारा ॥१॥ कर्मे करिकैजगबौराया । शक्तिभक्तिलैबांधिनिमाया॥२॥ प्रथमचरणकहे जगत्की आदिमें गुरुकहे साहब बिचारकीन कहेसुरति दीन कि हमको नाँनै, हम हंसरूपदै आपनेधामकोलै आवै।सो जीवनेह ते वा चैतन्यता पाय जगतमुख है जगत् उत्पन्नकरिकै संसारीद्वैगये सो करता तो साहबहैं जिनकी चैतन्यता पायजीव समष्टिते व्यष्टिभये तैनेसाहबकी करतब्यता ते न जान्याब्रह्मादिक नहीको सिरजनहार मानतभये ॥ १ ॥ तेईब्रह्मादिक नानाकर्मनको प्रतिपादन कारकै जगत् बौरायदियो औशक्ति जो है गायत्री तौने के उपदेशकी बिधिकैकै ताकी भक्ति आपकैकै औजीवनको कराय कै माया में बांधदियो ॥ २ ॥ अद्भुत रूप जातिकीवानी । उपजीप्रीतिरमैनीठानी ॥ ३॥ गुणिअनगुणीअर्थनहिंआया।बहुतकजनेचीन्हिनहिंपाया अद्भुत रूप औ नाना जातिकी जेहै कर्म प्रतिपादक ब्रह्मादिकनकी वाणी अर्थात् अद्भुतरूपनके हैं ध्यान जिनमें कहेकाहूके बहुत मूड़ काहूके बहुत हाथ