पृष्ठ:बीजक.djvu/९३

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(४२) बीजक कबीरदास । मनादिक एको नहीं रहनायहैं, तब मन वचनके परे जो पुरुषहै सो वह मुक्तजीवको हंसरूप देइ है ताको पायकै तेहिहंसरूपके इन्द्रिनते साहबके देखैहैं सो माकोप्रमाण बेदमें है ॥ “मुक्तस्यविग्रहोलाभः इतिकठशाखायाम् । सो यह बिचारनहीं करै हैं बाणीकेफेरमें ब्रह्महू भूलिगये सो आगे हैं ॥ ६ ॥ इतिचौथीरमैनीसमाप्तम् । अथ पांचवीं रमैनी। चौपाई। कहँलौंकहौंयुगनकीवाता । भूलेब्रह्म न चीन्हे त्राता ॥ १ ॥ हरिहर ब्रह्माकेमनभाई । बिबि अक्षरलै युगतिवनाई ॥२॥ बिबिअक्षरकाकीनविधानाअनहदशब्दज्योतिपरमाना ३॥ अक्षरपढ़िगुनिराहचलाई । सनसनन्दनकेमनभाई ॥४॥ वेदकितावकीन्हबिस्तारा । फैलगैलमनगमअपारा॥५॥ चहुंयुगभक्तनबांधलबाटी । समुझिनपरैमोटरीफाटी ॥६॥ भैभै पृथ्वीचहुँदिशिधावै । सुस्थिरहोयनऔषधपावै ॥७॥ होयभिस्तजोचितनडोलावै ।वसमैंछोड़िदोजखकोधावै८॥ पूरुव दिशा हंसगति होई । है समीप सँधि बूझे कोई ॥९॥ भक्तौभक्तिनकीनशृंगारा । बुड़िगयेसबमांझहिंधारा ॥१०॥ साखी ॥ विनगुरुज्ञानैदुन्दुभो, खसमकही मिलिवात ॥ युगयुग कहवैया कहै, काहु न मानीजात ॥११॥ कहँलौंकहौंयुगनकीबाता । भूलेब्रह्म न चीन्है त्राता ॥१॥ हरिहर ब्रह्माकेमनभाई । विवि अक्षरलै युगतिवनाई ॥२॥