पृष्ठ:बीजक.djvu/९८

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रमनी । ( 5 ) साखी ॥ शून्यसहजमनस्मृतिते, प्रकटभई यकज्योति ॥ बलिहारी तापुरुषछवि, निरालंब जो होति ॥६॥ सहज शून्य जो ( प्रकाश देखिपेरै ) ब्रह्मताके मनके स्मरणते एक ज्योति प्रकटहोयहै सो सालंबेह, योगीजन ब्रह्माण्ड में देखे हैं । औ वह जो अनुभव ब्रह्म है सोऊ सालबह काहेते कि वाहूको मन करिकै अनुभव होयहै सो कबीरजी कहै हैं कि ये दोऊ सालंबैहै कि तिनकी बलिहारी मैं कहां जाऊं सबके मालिक निरालंब परमपुरुष जे श्रीरामचन्द्र हैं तिनकी छबिकी मैं बलिहारी जाऊँहौं साहब निरालंब काहेतेहैं कि जीवकी जेती सामग्रीहैं मनादिक इंदियनकरिकै ज्ञानकरिकै अनुभव करिकै साहब न देखेजाय न जाने जाय जब आपही अपने हंसरूप देय हैं तब वह रूप करिकै देखेनाय औ आपही ते जानेजाय हैं तामें प्रमाण ।। ( सो जाने जेहि देहु ननाई । जानत तुम्हैं तुम्हैं द्वैलाई ॥ तुम्हरी कृपा तुम्हें रघुनन्दन । जानहिं भक्त भक्ति उरचंदन १) अर्थ है श्रीरामचन्द्र जाको तुमजनाइ देहुई। सो जान है । जो कहा हमारहीं जनायें कैसे जानेगो वेदशास्त्रता सबजनैतैिहैं तो एकबड़ो अवरोधहै नबतुम्हारे जानवेके लिये शमदमादिक कियो हृदय शुद्ध भयो तब आपहीको मानहै कि, महीं रामहैं सो तुमको कैसे जानिसकै । या हेतुते तुम्हारी ते तुमको जाँनैहै अथवा तुमको जानैहै तब तुमही हैंकै जानैहै तुम्हारे लोंकक जायहै । अर्थात् । जब तुमने वाको हंसरूप दियो तब वह पांचौ शरीर ते भिन्नद्वैकै हंसरूपमें स्थितभया तुमको जान्यो वह हंसस्वरूप कैसा है तुम्हारी अनिर्वचनीयासभाक्तरूप जो चन्दन है सो वाके उरमें लग्याहै ताकी शीतलता ते वह धोखा ब्रह्मके ज्ञानकी गरमीनहीं आयसकैहै । जिनको कृपाकरिकै तुम हंसरूप देह से जानैहै तुमको सो ऐसे जे साहब हैं परमपुरुष निरालंब तिनके कबीरजी कहैं कि मैं बलिहारी जाऊँह परमपुरुष श्रीरामचन्द्रही हैं तामें प्रमाण ॥ ( धर्मात्मासत्यसंधश्चरामोदाशरथिर्यदि । पौरुषेोचाप्रतिद्वंद्वःशरैनंजाहिरावणम्) इतिबाल्मीकीये ॥ लक्ष्मण जीने मेघनाद के मारत में शपथ किया है कि जोपौरुषमें अप्रतिद्वंद्वी श्रीरामहायँ कहेपुरुषत्वमें वैसो दूसरो न होय तो हमारे