पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१००

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HIN वीजक मूल १०१ एक गूदा ।। एक बूंद से शृष्टि रची है। को ब्राह्मण को शूद्रा । रजो गुण ब्रह्मा तमोगुण शंकर । सतोगुणी हरि होई ॥ कहहिं कवीर रामरमि रहिये। हिंदू तुरुक न कोई ॥ ७५ ॥ शब्द ॥ ७६ ॥ आपुनपौ आपही विसरयो। जैसे श्वान कांच मंदिर में । भरमित भूकि मरयो ।। ज्यों केहरि वपुनिरखि कूप जल । प्रतिमा देखि परयो । वैसेही गज फटिक शिला में । दश- नन आनि अरयो । मर्कट मूठि स्वाद नहिं विहुरे।। घर घर रटत फिरयो । कहहिं कबीर नलिनी के सुचना । तोहि कौन पकरयो ॥७६ ॥ __ शब्द ॥७७ ॥ आपन पास कीजै बहुतेरा । काहु न मर्म ई पावल हरि केरा ।। इन्द्री कहाँ करे विश्रामा । सो कहाँ गये जो कहत हते रामा ॥ सो कहाँ गये जो होत सयाना । होय मृतक वहि पदहिं समाना ॥ Trtor rigerator