पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१०२

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  • बीजक मूल

शब्द ॥ ८॥ वंदे करिले श्राप निवेरा। आपु जियत लखु आपु ठौर करु । मुये कहां घर तेरा ॥ यहि ौसर नहिं चेतहु प्राणी । अंत कोइ नहिं तेरा ॥ कहहिं कवीर सुनो हो संतो॥ • कठिन कालको घेरा ॥८॥ शब्द ॥१॥ उतो रहु रा ममा की भाँति हो । सब संत उधारन चूनरी ॥ वालमीक बन बोइया । चुनि ली- न्हा शुकदेव ॥ कर्म विनौरा होई रहा । सूत काते । जैदेव ।। तीनिलोक ताना तनो । है ब्रह्मा विष्णु। २. महेश ॥ नाम लेत मुनि हारिया । सुरपति सकल नरेश ॥ विष्णू जिभ्या गुण गाइया । विनु वस्ती है का देश ॥ सुने घर का पाहुना। तासों लाइनि हेत॥ चारि वेद कैडा कियो । निराकार कियो राछ॥ विने । कवीरा चूनरी । में नहिं बांध लवारि ॥ ८१॥