पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वीजक मूल .. १०५. मासु को पाक कहतु हो । ताकी उत्पति सुन भाई ॥ रज वीर्यसे मास उपानी । सो मास नपाकि तुम खाई ॥ अपनी देखि कहत नहिं अहमक । कहत हमारे बड़न किया । उसकी खून तुम्हारी गर्दन । जिन्ह तुमको उपदेश दिया ।। स्याही गई सुफेदी आई । दिल सफेद अजहूँ न हुआ ॥ रोजा वांग निमाज क्या कीजै। हुजरे भीतर पेठि मुवा ॥ । पंडित वेद पुराण पढ़े सब । मुसलमान कुराना ॥ कहहिं कवीर दोऊ गये नर्कमें । जिन्ह हरदम है ... रामहि ना जाना ।। ८३॥ शब्द ॥ ८४॥ ___ काजी तुम कौन कतेव वग्वानी । झंकत वकत रहहु निशि बासर । मति एको नहिं जानी ॥ शक्ति अनुमाने सुन्नति कनु हो। 1 मैं न बदों गाभाई ।। जो खुदाय तेरि सुन्नति करतु है है । अापुहि कटि क्यों न आई ॥ सुन्नति कराय

  • तुरुक जो होना । औरत को क्या कहिये ॥अर्ध ।

शरीरी नारिं वखानी । ताते हिंदू रहिये । पहिरि