पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/११

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१० वीजक मूल तहिया होते पिंड नहिं वासू । नहिंघरधरणि न पवन । अकासू । तहिया होते गुरु नहिं चेला । गम्प अगम्य न पंथ दुहेला॥ साखी-अविगति की गति का कहो, जाके गाँव न ठाँव ।। - गुण बिहूना पैसना, का कहि लीजे नाँव ॥७॥ रमैनी ॥ ८॥ तत्वमसी इनके उपदेसा । ई उपनिपद कहें । संदेसा ॥ई निश्चय इनके बड़भारी । वाहिक वर्णन करें अधिकारी ॥ परम तत्वका निज परमाना। सनकादिक नारर्दै शुक माना ॥ याज्ञवल्क्य औ जनक सम्बादा । दतात्रेय वाहि रस स्वादा । वाहि वात राम वसिष्ठ मिलिगाई । वाहि वात कृष्ण . उद्धव समुझाई । वाहि वात जो जनक दृढ़ाई । देह घरे विदेह कहाई॥ साखी कृत मर्यादा खोय के, जीवत मुवा न होय। देखव जो नहिं देखिया, अदृष्ट कहावे सोय ॥८॥ रमैनी ॥९॥ . धे अष्ट कष्ट नौ सूता । यमबांधे अजनी के। MUMAN marimmirmenternet