पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/११०

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  • वीजक मूल * १११ ॥

किया विवेका ॥ वाटे बाटे सब कोइ दुखिया । क्या । गेही वैरागी ॥ शुक्राचार्य दुखहि के कारण । गर्भहि । माया त्यागी ।। योगी जंगम ते अति दुखिया । तापस के दुख दूना॥आशा तृष्णा सब घट व्यापी। 'कोई महल नहिं सूना । सांच कहाँ तो सब जग खीजे । झूठ कहा ना जाई ॥ कहहिं कवीर तेई भौ। है दुखिया । जिन्ह यह राह चलाई ।। ६१ ॥ शब्द ॥ १२ ॥ १ ता मनको चीन्हो मोरे भाई । तन छूटे मन ' कहां समाई ॥ सनक सनंदन जैदेवनामा । भक्ति

  • हेतु मन उनहुँ नजाना॥अंबरीप प्रहलाद सुदामा ।

भक्ति सही मन उनहुँ न जाना ॥ भरथरी गोरख

  • गोपी चंदा । ता मन मिलि २ कियो अनंदा ।।।

जा मनको कोई जानु न भेवा तामन मगन भये शुकदेवा । शिव सनकादिक नारद शेषा । तनके भीतर मन नहुँ न पेखा ॥ येकल निरंजन सक्कल शरीरा । तामहँ भ्रमि भ्रमि रहल कवीरा ॥ २ ॥ RAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAKAAKAARRARIA wrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr-