पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१११

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  • वीजक मूल

शब्द ।। ६३ ॥ बाबू ऐसो है संसार तिहारो। ईहै कलि व्यो हारो ॥ को अब अनुख सहत प्रतिदिनको । नाहि । न रहनि हमारो ॥ सुमृति सोहाय सबै कोइ जाने ।। । हृदया तत्व न बूझै ॥ निर्जिव पागे सजिव थापे । लोचन किछउ न सूझे ॥ तजि अमृत विष कहिको । अँचवे । गाँठी बाँधिनि खोटा ॥ चोरन दीन्हा पाट है सिंहासन । साहुन से भी अोटा ।। कहहिं कबीर । झूठे मिलि झूठा । ठगही ठग व्योहारा तीनि लोक ! भरपूर रहा है । नाहीं है पतियारा ॥ ३ ॥ शब्द ।। ६४॥ कहो हो निरंजेन कौने बानी । हाथ पाँव मुख श्रवण जिभ्या नहिं । काकहि जपहु हो पानी ॥ ज्योतिहि ज्योति ज्योति जो कहिये । ज्योति कौन सहिदानी ॥ ज्योतिहि ज्यो- ति.ज्योति दै मारै । तब कहाँ ज्योति, समानी ।। चारि वेद ब्रह्मा जो कहिया । उनहुँन या गति जानी।। CU A rrrrrrrrrirmirmirmirmirm