पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/११३

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1११४ वीजक मूल अवगुण रहे छिपाये ॥ क्या वजू जप मंजन कीये !! क्या मसजिद शिरनाथे ॥ हृदया कपट निमाज ! गुजारे ! क्या हज मके जाये ।। हिंदू वरत एकादसि । चौविस । तीस रोजा मुसलमाना ॥ ग्यारह मास कहो किन टारे । एक महीनाबाना ॥ जो खुदाय ! मसजीद वसतु है । और मुलक केहिकेरा ॥ तीरथ मृरत राम निवासी दुइमा कितहुँ न हेरा ॥ पूख दिशा हरीको वासा । पश्चिम अल्लाह मुकामा । दिलमें खोजि दिलहिं मां खोजो। इहै करीमा रामा । | वेदकितेव कहो किन झूठा । झूठा जो न विचारे ॥ । सबघट एक एककै लेखे । भय दूजाके मारे ॥ जेते। औरत मर्द उपाने । सो सब रूप तुम्हारा ।। कवीर। पोंगराअल्लाहरामका । सो गुरु पीर हमारा ॥ ६७॥ शब्द ॥ १८॥ श्राव वे भाव मुझे हरिको नाम । और सकल तजु कौने काम ॥ कहँ तव अादम कहँ तव । हव्वा । कहाँ तव पीर पैगम्बर हुवा ॥ कहाँ तव पन्नान