पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/११४

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MATARAAMAHAR वीजक मूल

  • जिमी कहाँ असमान । कहाँ तव वेद कितेत्र कुरान

जिन्ह दुनियाँ में रची मसजीद । झूठा रोजा झूठी ईद ॥ सांचा एक अल्लाह को नाम । जाको नय नय करो सलाम ॥ कहुँ धौ विहिस्त कहाँ ते आई।

  • किसके कहे तुम छूरी चलाई॥ कर्ता किरतम वाज

लाई । हिन्दू तुरुक की राह चलाई।कहाँ तव दिवस कहाँ तव राती । कहाँ तव किरतम किन उत्पाती ।। नहिं वाके जाति नहीं वाके पांती ।। कहहिं कबीर वाकी दिवस न राती ॥ ६॥ शब्द ॥ ६ ॥ अब कहाँ चलेउ अकेले मीता । उठहु न करहु घरहु की चिंता। खीर खांड़ घृत पिंड सँवारा। सोतन लै बाहर के डारा ॥ जो सिर रचि २ बाँधहुई पागा । सो सिर रतन बिडारत कागा ॥ हाड़ जरे । जस जंगल लकड़ी। केश जरे जैसे घासकी पूली। श्रावत संग न जात संगाती।काह भये दल वॉधल। हाथी ॥ माया के रस लेन न पाया । अंतर यम । विलारि है घाया। कहहिं कबीर नर अजहुँन जागा KHAAHIRAHARIHARARIAARA