पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/११५

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ना Writer+ARARIA बीजक मूल यमका मुगदर माँझ सिर लागा ॥६६॥ शब्द ।। १००॥ ई देखउ लोग हरि केर सगाई । माया धरि पुत्र धियेउ संग जाई । सासु ननदि मिलि अचल चलाई । मॅदरिया गृह बैठी जाई ।। हम बहनोई राम मोर सारा । हमहिं बाप हरि पुत्र हमारा ॥ कहहि । कबीर ये हरि के बूता। राम रमे ते कुकुरि के पूता॥ _ शब्द ॥ १०१॥ देखि २ जिय अचरज होई । यह पद वूम बिरला कोई ॥ घरती उलटि अकासें जाय । चिउँटी । के मुख हस्ति समाय । विना पवन सो पर्वत उड़े। जीव जंतु सब बृक्षा चढ़े। सूखे सख़र उठे हिलोरा।। बिन जल चकवा करत किलोरा । बैठा पंडित पढ़े पुरान । बिन देखे का करत बखान ॥ कहहिं कवीर । यह पदको जान | सोई संत सदा परमान ॥१०॥ शब्द ।। १०२॥ . 1 होदारी के ले देउँ तोहि गारी । तें समुझि