पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१२८

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  • बीजक मूल * १२६

स्वर्ग पताल न देखे जोई ॥ २६ ॥ शशा सर नहिं । देखे कोई । सर शीतलता एकै होई ॥ शशा कहे। सुनहुरे भाई। शून्यसमान चला जग जाई ॥३०॥

पषा खर खर करें सब कोई । खर खर करे काज नहिं ।

होई ।। पपा कहे सुनहरे भाई। राम नाम लेजाह पराई ॥१३॥ ससा सरा रचो बरियाई । सर वेधे सब लोग तवाई ॥ ससा के घर शूनगुण होई। इतनी 'बात न जाने कोई ॥ ३२ ।। हहा हाय हायमें सब .जग जाई । हर्प सोग सब मॉहि समाई । हँकरि हकरि सब बड़बड़ गयऊ । हहा मर्म न काहू पयऊ॥३॥क्षक्षा छिनमें परलय सब मिटि जाई ।। छेव परे तब को समुझाई ॥ छेव परे काहु अंत न पाया कहहिं कबीर अगमन गोहराया ॥ ३४ ॥ अथ रिम मतीसी। विप्र मतीसी ॥१॥ सुनहसवन मिलि विप्र मतीसी। हरि बिन बूड़ी नाव भरीसी । ब्राह्मण होपके ब्रह्म न जानें।। rrrrrrrrrrroris