पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१३७

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.१३८ वीजक मूल पुकारे हो । मूड मुड़ाय फ्रालिके वैठे। मुद्रा पहिर। मंजूसा हो ॥ तेहि ऊपर कछ चार लपेटे । भितर।

  • भितर घर मृसा हो ।। गांव वसतु है गर्भ भारती ।।

२ बाम काम हंकारा हो ।। मोहन जहाँ तहाँ ले जइहें। नहिं पत रहल तुम्हारा हो ।। माँझ मझरिया बसे । + सो जाने । जन होइहें सो थीय हो । निर्भय भये - तहाँ गुरुकि नगरिया। सुख सोवें दास कवीरा । हो ॥७॥ +- +-didia कहरा ॥८॥ , " - क्षेम कुशल श्री सही सलामत | कहहु कौन को दीन्हा हो ॥ प्रावत जात दोऊ विधि लूटे।। सर्वतंग हरि लीन्हा हो । सुर नर मुनि जति पीर ।

  • ग्रोलिया । मीरा पैदा कीन्हा हो । कहाँ लो गनों

अनंत कोटि लो । सकल पयाना कीन्हा हो। पानी पवन अाकाश जायँगे । चंद्र जायँगे सूरा। हो । येभि जायँगे वोभि जायँगे । परत न काहुके हैं पूरा हो ।। कुशल कहत कहत जग.विनसे | कुशल... - -