पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१३८

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  • बीजक मूल

काल की फाँसी हो । कहें कवीर सारी दुनियाँ। - विनसे । रहे राम अविनाशी हो ॥ ८॥ कहरा ॥६॥ । ऐसनि देह निरालप वौरे। मुवले छुचे न कोई हो ॥ डंडवा की डोरिया तोरि लराइनि.। जो . कोटिन धन होई हो ॥ ऊर्ध निस्वासा उपजि ! तरासा । हॅकराइनि परिवारा हो ॥ जो कोइ अावे । वेगि चलावे । पल एक रहन न पाई हो ॥ चंदन ! चीर चतुर सब लेपें । गरे गजमुक्ता के हारा हो । 1 चौंसठ गीध मुये तन लूटै । जंबुकन वोद्र बिदारा हो ॥ कहहिं कवीर सुनो हो संतो । ज्ञान हीन मति है हीना हो ॥ एक एक दिना येही गति सबकी । । कहा राव कहा दीना हो ॥६॥ कहरा ॥ १० ॥ ___हौं सवहिन में हौं मैं नाहीं । 'मोहिं विलंग बिलगाइल.हो । अोढ़न मोरा एक पिछौरा ! लोग - बोले एकताई हो । एक निरंतर अंतर नाहीं ।ज्यों । wrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrritama r t