पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१३९

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.. । . - बीजक मूल, mmmmmmm अथ वसेव लिख्यते । वसंत (१) जाके बारह मास वसंत होय। ताके पर मारथ । बूझे विरला कोय ॥ बरसे अगिन, प्रखंड धार हरि 'यर भौ वन अठारह भार ।। पनिया आदर धरि न लोय । पौन गहे कस मलिन धोय ॥ विनु तरिवर ! फले अाकाश । शिव विरंचि तहाँ लेई वास ॥ सन- कादिक भूले भँवर बोय । लख चौरासी जोइनि ! जोय ॥ जो तोहिं सतगुरु सत्त लखाव । ताते न ! छूटे चरण भाव ।। अमर लोक फललावे चाव।। कहहिं कबीर बुझै सो पाव ॥ १ ॥ वसंत ॥ २॥ रसना पढ़ि लेहु श्री वसंत 1 बहुरि जाय पर- बेहु यमके फंद ॥ मेरु डंड पर डंक दीन्ह । अष्ट कँवल परचारि लीन्ह ॥ब्रह्म अगिन कियो परकाश। अर्घ-उर्घ तहाँ वहे वतास । नौ नारी परिमल सो गाँव । सखी पांच तहाँ देखन घाव ॥ अनंदह वांजा