पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१४५

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1.१४६ वीजक मूल* सो लेइ विचारि ॥ कपरा न पहिरे रहै उघारि ।। निर्जिव से धनि अति पियारि।। उलटि पलटि वाजु । तार | काहू मारे काहु उबार ॥ कहें कबीर दासन के दास । काहू सुख दे काहु निरास ॥ ८॥ ___वसंत ॥ ६॥ ऐसो दुर्लभ जात शरीर ॥ राम नाम भजु लागू तीर ॥ गये वेनु बलि गये कंस । दुर्योधन को बूड़ो वंस ॥ पृथु गये पृथ्वी के राव । त्रिविक्रम गये रहे न काव ॥ छौ चकवे मंडली के झारि । अजहुँ हो नर देखु विचारि ।। हनुमत कस्यप जनक ! वालि । ई सब छेकल यमके द्वारि ॥ गोपीचंद भल कीन्ह योग । जस रावण मारयो करत भोग । ऐसी जात देखि नर सबहिं जान । कहहिं कबीर भजु राम नाम ॥ ६॥ वसंत ॥ १० ॥ .सवही मतमाते कोई न जाग । संगहिं चोर घर मूसन लाग ॥ योगी माते योगध्यान । पंडित