पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१६

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वीजक मूल । रमैनी ॥ १२॥ माटिक कोट पपान को ताला | सोईक वन सोई रखवाला ॥ सो वन देखत जीव डेराना । ब्राह्मण वैष्णव एकै जाना ।। ज्यों किसान किसानी करई ।। उपजे खेत बीज नहिं परई ॥ छाड़ि देहु नर झेलिक • भेला । बूड़े दोऊ गुरु श्री चेला ॥ तीसर वूड़े । पारथ भाई । जिनबन डाह्योदवा लगाई ॥ भूकि ई मँकि कूकुर मरि गयऊ । काज न एक सियार ! से भयऊ॥ माखी-मृस विलाई एक संग, कहु कैसे रहि जाय । एं अचरज एक देखो हो सतो, हस्ती सिंघहि खाय ॥१२॥ रमैनी ।। १३॥ नहीं परतीत जो यह संसास । दर्व की चोट कठिन के मारा ॥ सोतो शेपौ जाइ लुकाई। काहुके परतीत न आई ॥ चले लोग सब मूल गमाई ॥ यमकी वाडि काटि नहिं जाई श्राजु काज! जो काल अकाजा। चले लादि दिगंतर राजा।