पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१७

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Nrhter YYY. nue RAHAMAKAMALAMALA बीजक मूल व सासी-फला भार न ले सके, कहे सविन सो रोय । ज्यों ज्यों भीने कामरी, त्यो त्यों भारी होय ॥ १५ ॥ रमैनी ॥ १६॥ के चलत चलत अति चरण पिराना । हारि।

  • परे तहाँ अतिरे सयाना | गण गंधर्व मुनि अंतन

पाया । हरि अलोप जग धंधे लाया |गहनी बंधन। वाण न सूझा । थाकि परे तहां किछउ न वृझा । भूलि परे जिय अधिक डेराई । रजनी अंध रूप है। आई ।। माया मोह उहाँ भरपूरी । दादुर दामिनि । पवन अपूरी ।। वरसै तपे अखंडित धारा ॥ रैनि . भयावनि कछु न अधारा ॥ __सासी-सर्व लोग जहँडाइया, अन्या सर्व मुलान । कहा कोई ना माने, [स] एकै माहिं समान ।। १६॥ रमनी ।। १७॥ । जस जिव ापु मिले अस कोई । बहुत • धर्म सुख हृदया होई ।। जासु वात रामकी कही।

  • प्रीति न काहू सो निर्वही ॥ एकै भाव संकल।
जग देखी । बाहर परे सो' होय विवेकी ।।

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