पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/२१

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TRYTHmonymyyy २० वीजक मूल साखी-मंदिर तो है नह का, मति कोड पठी घाय। जो कोई पै धाय के, विन मिर सेती जाय ॥ २२ ॥ रमनी ॥ २३॥ 1 अल्प सुख दुख आदिउ अंता। मन भुलान मेगर मैमंता ॥ सुख विसराय मुक्ति कहाँ पावे।। परिहरि साँच मुठ निजधावे ।। अनल ज्योति डाहें । एक संगा। नैन नेह जस जरै पतंगा॥करहु विचार जो सब दुख जाई । परिहरि भूग केर सगाई । लालच लागी जन्म सिराई । जरा मरन नियरा- यल आई ॥ . 2 साखी-भरममा बाँधा ई जग, यहिविधि श्रावेजाय ॥ मानुप जन्महि पाय नर, काहेको जहँडाय ॥ २३ ॥ ॥ रमैनी ॥ २४ ॥ चंद्रचकोर अस वात जनाई । मानुप बुद्धि दीन्ह ! पलटाई । चारि अवस्था सपनेहु कहई । झुठो रोई जानत रहई ॥ मिथ्या वात न जाने कोई । यहि । विधि सब गेल विगोई ॥धागे 'दैदे सवन गमाया। ourrtY**

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